अनुभूति के
रस में डूबकर
मनोभाव जब
स्थिर हो जाता है
तब भवसागर में
विचारों की वेगवान
अनंत लहरें भी
रोक नहीं पाती
मिलने से....
कल्पना को कवि से
प्रेमी को प्रियतम से
आत्मा को परमात्मा से
बिम्ब को प्रतिबिम्ब से!-
वास्तविकता के चरम बिंदु पर
आस्तित्वहीन, तुम्हारा चिंतन
कल्पनाओं में सजीव तुम
जहाँ तुम स्थिर, और मैं
प्रेम के समक्ष अवनमन
प्रतिबिंब प्रेरित करता है
आगे बढ़ती हूंँ
तुम्हें समेटने के लिए
ढूंढती हूँ अनुभूति गहन
जो तृप्त कर दे
अंतरात्मा को
मूक छवि धूमिल पाती हूँ
नितांत निशब्द, निशांत मैं
जैसे हो कोई दर्पण
स्तब्ध धरा पर ओस की बूंद सा
अनुराग समस्त तुमपर अर्पण....-
जब प्रेम में लिपटी हुई तुम्हारी हंसी
पूर्ण सूर्योदय की प्रभा समान
तुम्हारे मुख पर बिखरते हुए
गुलाब की पंखुड़ियों जैसे
अधरों से व्यक्त होते शब्दों के साथ
एक सम्मोहनकारी ताल-मेल प्रस्तुत करते हुए
मुझसे किसी विद्धुत की
अतिवेग तरगों की भाँति आ मिलती हैं तो
मानो मेरा रक्त किसी पर्वत के
अभ्र-सी शीतलता को प्राप्त कर
मेरे हृदय व मस्तिष्क को
क्षण भर अचेत कर जाता है।
वही कहीं मैं प्रेम योगी,अकस्मात ही
शून्य को प्राप्त करता हूँ।
जिसके लिए अनेकानेक तपस्वी
अन्यान्य मार्ग से वर्षों तप लीन रहते हैं।
कितना सहज है ना
तुम्हारे प्रणय में
इस परम् व सुखद अवस्था की
क्षणिक अनुभूति को प्राप्त करना।-
हमें उसने
अपना बना लिया
दूसरे ही पल
पराया कर दिया
क्योंकि यह क्रम है
किसी दूसरे पराए को
अपना बनाने का
और किसी अपने को
को पराया करने का-
"प्रेम" महज़ ये शब्द नहीं है
बहुत गहरी भावनायें जुडी़ होती है इनसे
प्रेम में होना, प्रेम को समझ पाना, और
प्रेम को व्यक्त कर पाना एक अलग ही
अनुभूती होती हैं ........
( शेष अनुशीर्षक में)
👇-
हाँ तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो..
नही क्रश नही हो तुम मेरे ना ही कभी थे.. सच कहूं ना तुम मेरा भूत हो ना ही वर्तमान और ना ही भविष्य
फिरभी मैंने जाने क्यों तुम्हारे साथ कई अधूरे सपने देखे हैं ।
तुम जब से मेरे जीवन में आए हो मेरा यकीन बन कर रहे हो ....जो मुझे हार के डर से बाहर लाता है।
जो मुझे जीतते हुए देखना चाहता है।
हां ....यकीन ही तो हो तुम मेरा मैं कह नहीं पाई तुमसे कभी...
लेकिन सच कहो क्या तुम समझ पाए कभी मेरी अनकही को??? कौन हो तुम???
तुम मुझे जब भी मिले कतरों में ही मिले उलझे हुए से किसी और मे .....
मैं तुमसे कहना चाहती थी लेकिन मुझे पता था कि ...खोजना बिन खोई चीज का कितना मुश्किल है और ढूंढना उसमें किसी ऐसे प्रतिबिंब को जो तुम्हारा है ही नही ।
नहीं.. मैं हारी नहीं ,मैंने हर कतरे को एक-एक करके रंगना शुरू कर दिया अब अक्सर उन रंगों के कतरों में रंग लेती हूं खुद को ...
अब जो देखोगे ना तुम मुझे तो तुम्हे मुझ में तुम्हारी छवि नजर आएगी।-
कुछ अनुभूतियाँ
मन के गर्भ में ही
अपने अन्तिम संस्कार
की नियति लिखवा कर
लाती होंगी न?-
ना मैं कठिन शब्दावली से
भरी कविता लिखता हूं
ना ही आपको सुनाता हूं
मैं तो अनुभूति के रस में डूबी
प्रेम कल्पनाओं का जाम पीता हूं
और वो ही आपको पिलाता हूं !!!
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प्राण में ही नहीं निर्वाण में भी
प्रणय का अपना अनुबंध होगा
होगी अनुपम अनुभूति
जीवन कुंदन होगा!
अखंड ज्ञान होगा
अतुल्य बोध होगा
होगी अनुपम अनुभूति
जीवन कुंदन होगा!
क्लेष ना होगा कोई
शेष ना कोई अभिलाषा होगी
होगी अनुपम अनुभूति
जीवन कुंदन होगा!-
इस 'प्रेम' की अनुभूति
उन हवाओं जैसी है,
जो मजबूत जड़ों वाले,
कठोर, विशालकाय
बरगद को भी मचलने,
गुनगुनाने, रिझाने और
हवा के साथ बहना सीखा देती है।-