अंकित कृष्ण  
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Joined 7 May 2018


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साथ जिसने चाहा,उसे साथ दे दिया

जो छोड़कर चला,उसे छोड़ ही दिया

मैं मांझी वह नाव खेवता

जिधर नीर कहे उधर नाव मोड़ता

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सब ज्ञात होना निकटता कभी नहीं लाता

निकटता हेतु अनभिज्ञता परम् आवश्यक है

कदाचित वह निकटता छल से ही प्राप्त हो

व्यक्तित्व का सर्व विदित होना क्षुद्र कर देता है

जैसे शून्य के आने पर प्रश्न हल हो जाता है

जैसे स्वार्थपूर्ति पर पथ विलग हो जाता है

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21 DEC 2023 AT 21:14

टूटे हुए को फिर क्या तोड़ना
मरते हुए को फिर क्या मारना
जो जंग जीती ना हो किसी ने
उसे लड़कर फिर क्या हारना

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10 DEC 2023 AT 17:49

मैंने उर लिखा,तप लिखा,पीड़ा लिखी और समझ न पाया कोई
मैंने प्रेम लिखा,असुरत्व लिखा,हिंसा लिखी और सभी यह जान गए

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हम तो आम आदमी है।हमारी नस्लें जाने कहाँ जाएंगी?
हमारे पूर्वजों ने हमें तख्त-ओ-ताज परोसा और भरोसा किया अपनी नस्ल पर,
परोसी गयी चीज़े स्वादिष्ट होती हैं,आसान होती हैं,निर्भर रखती हैं।
हमने गुरुर किया अपने पुरखों पर और निर्भर रहे उस गुरुर पर
हमने कुछ नहीं किया।हम तो आम आदमी है।
हमारी नस्लें क्या करेंगी?पुरखों के पुरखों पर गुरुर करेंगी!
तख्त-ओ-ताज तो रहा नहीं पास।दस जन बटोर बना लेते साम्राज्य।
वह साम्राज्य जिसमें मान सिंह है।साम्राज्य हड़पे जाएंगे।
या तो पुराने किले की तरह ढह जाएंगे और फिर कहेंगे,
हम तो आम आदमी है।
हमारी नस्लें आगे जाएंगी।आगे तो जाएंगी मगर,
इस मायावी जाल में फंसकर गर्त में जाएंगी।
सब मिट जाएगा,आम आदमी भी।
तख्त-ओ-ताज,गुरुर,पुरखों की कहानी भी...।

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16 NOV 2023 AT 21:23

लोग बदल जाते हैं।दूसरों की कही हुई बातों से
उन्हें फर्क पड़ता गुज़रे हालातों से
लोग बदल जाते हैं।
मैं नहीं बदला...हर उम्र,हर मोड़,हर पड़ाव
लगभग हर हालातों से गुज़रा मैं,
पर ना बदला मैं
किसी दुख से,किसी सुख से या किसी के ज़ज्बातों से
कठोर मेरा हृदय नहीं,हृदय में बस प्रेम है।देने वाला प्रेम,
वो प्रेम नहीं,जो पाने की अभिलाषा रखता हो।
कठोर तो मेरी बुद्धि है,जिसमें अभिलाषा किंचित,
किन्तु चतुराई और मूर्खता
दोनों ही समान रूप से भरपूर उपलब्ध हैं।
चतुराई से सब कुछ नियंत्रित करता आया।
जो न हो सका उसे मूर्खता से छोड़ता आया।
लोग बदल जाते हैं!जाने कैसे?
शायद धीरे-धीरे,धीरे धीरे उनके मनोविचार बदल जाते हो।
दुनिया को देखने का नज़रिया बदल जाता हो।
जीने का तरीका बदल जाता हो,सब धीरे-धीरे
एकाएक तो भूकम्प आते हैं,सुनामी आती है,कयामत आती है।
जो सब मिटा जाती है।
बदलाव की चाल तो धीमी ही होगी।लोग ऐसे ही बदल जाते हैं।
पर मैं नहीं बदलूंगा।क्योंकि,हृदय बदले जाते हैं।
बुद्धि तो बस मिट जाती है!हमेशा के लिए...

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10 NOV 2023 AT 18:27

माना कि मंज़िल आसां नहीं लेकिन सफ़र जारी है।
अब तक जो हारे हुए आये उन्हें जीतने की बारी है।
हम टूटते हैं,बिखरते हैं और जुड़ जाते फिर बारहा,
हमें हौसलों ने ही पाला है और मुश्किलों से यारी है।

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उसका सजना भी क्या सजना
जो बिन सजना के सजना
देख महावर कर में सजना
जग में सकल है धूमिल सजना

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31 OCT 2023 AT 16:31

कुछ रिश्ते उलझे धागे से होते हैं
सुलझते हैं और उलझते हैं
सुलझाना किसी उत्तर की तरह होता है
और उलझाना किसी प्रश्न की तरह
मेरी सीखी हुई विद्याओं में
इन धागों को सुलझाना नहीं था
किसी ने कहां था प्रश्न होते हैं तो
उसके उत्तर भी कहीं जरूर होंगे
बस यही मेरा बल है
और उस कहीं में मेरी आशा
लोग परखते हैं,उन्हें लगता है
परखना,लगना,ये पहुँचने नहीं देता
वहाँ,जहाँ हमें होना चाहिए
जैसे आत्मा शरीर में जहाँ होती है
जैसे प्रेम आत्मा के भीतर जहाँ होता है
देह का क्या है?आज,कल,परसो
स्वरूप बदलता है,ढांचे बदलते है
मंदिर में प्रतिष्ठित ईश्वर वही होता है
जो पहले था,जो हमेशा रहेगा

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25 OCT 2023 AT 22:35

ये चाँद ,ये चाँद है कि रोज़ निकलता ही नहीं है

आज निकला है उन शोख अदाओं को लिए

कि बिन बादलों के बिजली से चमक उठी है आसमां

कि बिन गीतों के ही मोर नाच रहा है सीने में

धड़कन धड़क उठी है ज़ोरों से महबूब के दिख जाने पर

हालात-ए-हाल बयाँ ही नहीं होते उन मस्त निगाहों पर

ये चाँद आज निकला है कि रोज़ निकलता ही नहीं है

ये चाँद आज निकला है कि रोज़ निकलता ही नहीं है...

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