सुनो अघोरी,
नहीं चढ़ाती तुझे धतूरा,
छिद्रित करता यह देह तेरी।
(रचना अनुशीर्षक में पढ़िए)-
वर्णनातीत तुम हो अघोरी
अवीरा मैं प्रियतमा तुम्हारी
(अनुशीर्षक में पढ़िए)-
हे अविनाशी अनंत अघोरी,
सब जग है तुम बिन त्राहि त्राहि
है त्रिपुण्ड के विध्वंशकारी
दरस को तुम्हरे हम अभिलाषी।
हे अविनाशी अनंत अघोरी,
चरम पर पाप, है पूण्य पर भारी
हे त्रिलोक के अधिकारी,
संहार करो प्रभु, हमें पुण्य अति प्यारी।
हे अविनाशी अनंत अघोरी,
कल्याण करो हे सदा सबुरी
ध्यान धरूँ हे नाथ तुम्हारी,
प्रकट हो दूर करो कष्ट हमारी।-
जितना जिसके भाग्य में लिखा वो उतना पाता है,
मेरे भोले के दरबार में सबका खाता है ।-
PUsh YoURselF BecaUSe NO one Else iS gOIng To dO it foR yoU.
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पूरा आदिपुर शहर घूमकर आया
शाश्वत की खोज में
और आप महोदय जा कर बैठे हो
शिव शंकर भोले की गोद में-
तुमसे ही तो पूर्ण हूँ मैं,
बिन तुम्हारे तो शून्य हूँ मैं।
तुमसे ही तो संसार है,
बिन तुम्हारे तो सब बेकार है।
तुमसे ही तो चारों धाम हैं
बिन तुम्हारे तो सब शमशान है।
-शैव रवि राज राजपूत-
देवा तेरा क्रोध भयंकर ,
सब कहते तुझे भोले शंकर ,
भूत प्रेत सब तेरे साथी ,
भस्म राख लिये सब शमशान के वासी ,
संसार के मोह से परे हो तुम तो ,
दर पर तेरे अब मोक्ष दिला तो हमको ,
भक्ती मे 'तेरी अब तो लिन हो जाऊ ,
साधू बनू न संत बनू ,मै तो तेरा अघोरी बन जाऊ .....-
भले ही मेरी जेब में
थोडी सी फ़कीरी है ,
पर मेरा जिगरा
कैलाशी रहेगा..!-
अघोरियो का स्वामी भी तू
माहाकाल एकान्की भी तू
तू ही रुद्र त्रिनेत्र भी तू
तू हि विश है अमृत भी तू
जीवन भी और सार भी है तू..!-