इंसानियत ही यहां डर रही है इंसान से, ना देख राह रोशनी की, आगे है बढ़ना अंधियारे रास्तों से, वाकिफ नहीं मेरे नन्हे तू इस भीषण वास्तव से, तबाही का होता अंदाजा तो जन्म ना देती तुझे इस कोख से।
लेकिन दुनिया यहां पर खत्म नहीं हो जाती। किस्मत ऐसा ही करती है। चोट भी देती है, उसके बाद मरहम भी लगाती है। लेकिन आप मायूस ना हो। ज़हाँ सब कुछ बिगड़ जाता है वहीँ से कुछ ठीक भी होने लग जाता है, और वक़्त के साथ यकीनन आपको इस बात का अंदाजा लग जायेगा।