कभी हिटलर की तरह रोब जमाती है,
तो कभी बात बात पर बहुत लड़ती है।
जब मन होता है उदास,
तो एक दोस्त बन संभालती हैं।
पापा और भाई की डाँट से,
हमें हर बार बचाती है।
बोलने , बतियाने का लहज़ा
हमें सिखलाती हैं।
गुस्से में भले चिल्लाये,
पर मां की तरह पुचकारती भी है।
आखिर एक बड़ी बहन ही माँ,दोस्त,सलाहकार
तीनों की भूमिका निभाती है।
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