बडे़ खुश-खुश दिख रहे हो, आख़िर हुआ क्या है...
इश्क़ ही तो हुआ है जनाब, इसमें नया क्या है..
इब्तिदा-ए-इश्क़ है, परवाज़ देखते ही बनती है तुम्हारी..
तुम मौक़ूफ़ नहीं बहारों पर, तुम्हें क्या इल्म जमाने की हवा क्या है..
आंखें बता रही है तुम्हारी, ये रातें जाग कर काटते हो ..
नींद ही तो गई है ग़नीमत है, अभी तक गया क्या है..
किसे समझा रहे हो "नकुल",तुम भी राही हो इस रहगुज़र पर..
ठोकरों ने ही सिखाया है तुम्हें, जफ़ा क्या, वफ़ा क्या है..
-