दिवाली तो आती है पर वो वाली नहीं आती,
जिसका हमें इंतज़ार रहता था, पटाखे फोड़ने व मिठाइयां खाने को दिल बेक़रार रहता था..!
अब तो बस काम निपटाना है, घर को सजाना है, दीपों को जलाना है, पकवान खाकर, चादर तान के सो जाना है..!
दीयों की रोशनी, मिठाइयों की मिठास, पटाखों की आवाज, मेहमानों का इंतजार सब कुछ तो वही है पर बचपन नही है..!
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