फिर आए हैं लुटेरे, देखो शराफ़त का जामा ओढ़े,
मोती झरते अल्फ़ाज़ और विनम्रता भरे हाथ जोड़े।
सिर झुकाए, दयालुता दर्शा रहे हैं,
इन मुस्कान की आड़ में, योजनाएं बना रहे हैं।
योजनाएं? हां वही जिसमें जनता-उद्धार के वादे हैं,
या इन वादों में छुपे अपनी आमदनी के इरादे हैं।
मतदान करना वैसे तो लाचारी है मजबूरी है,
क्योंकि देश को चलाने को एक नेता भी तो जरूरी है।
तो चलो, इन नेताओं की भूख मिटाते हैं,
देश के "विकास" में हिस्सेदार बन, इन्हें वोट दे आते हैं।।
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