हिसाब पसीने का नहीं देखते षडयंत्रो के जाले। ना दिखते राज़ काले काले । नहीं दिखती घुटन सासों की ना सुनी जाती आवाज़ मजलूमों की । जो बिकता है बाजारों में , लेखक केवल वही लिखता है , किताबों में।
क्या हार की पीड़ा, क्या जीत का आनंद क्या प्रेम का विरह क्या प्रेम का सुख इच्छा अपेक्षा आकांक्षा स्वार्थ छल विलास चैन क्रोध सभी दशा मे चित्त स्थिर करना है हाँ मुझे जीवन का अर्थ खोजना है।
प्रेम है की जो बताया नही जाता होगया तो जिंदगी भर भुलाया नही जाता बुद्धि और स्वार्थ के तराजु मे तोला नही जाता "प्रेम हो गया है आपसे " यह भी बोला नही जाता।