ज़ब नेह अटक जाता है
संवेदना की खिड़की पर
तब मन का अंधेरा
वीरान कमरा गूंज
जाता है नेह की
फड़फड़ाहत से|
..
..
कितना बोझिल है न
मृत होते हुए भी
खुद को जिंदा
होने का यकीन
दिलाते रहना|
कई बार करती हूँ मै.....-
Aapne aap ko manau kaise....
Dil aur dimaag ke ish, virodhabhas ko suljhau kaise....
Kaun sahi kaun galat.....
Kis ek ki sunnu aur ek ko chup karwau kaise.........-
कौन जाने कब खिज़ा हटेगी कब खिलेंगी बहारें।
कश्ती फंसेगी कब भंवर में, कब लगेगी किनारे।
ज़िन्दगी के अनुभावों में विरोधाभास बड़े न्यारे;
तुफानों से युद्घ करते हुये जीते हैं वायु के सहारे।-
मेरे दिल और दिमाग के बीच
गजब का विरोधाभास है
दिमाग ले जाना चाहता
मुझे तुझसे दूर
पर दिल रहना चाहता तेरे पास है
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Ajkal ke risto me bahot virodhabhash he.apne to he par apno se nahi.yahi risto ki vidambna he.
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Virodhabhas ki stithi
jab dil aur dimaag ke beech ho
to jeevan mein khushiyon
ka abhaav sa ho jaata hai-
💕💕 सपने सुहानो में खोये हम
लेकर सो रहे थे सुकूं की सांस
पति महोदय करें साढे छ:बजे
जब हमसे चाय की फरमाइश
और हम बेचारे ठंडी के कहर के मारे
ना चाहे फिर भी खुश होकर उठ जाते
अजी चाय तो क्या नाश्ता
बनाने का परम सुख भी उठाते
सुबह की ये बेला करा जाती
हमको ये आभास यही तो है
आलस्य व कर्तव्य का असली
विरोधाभास 👈👈👈👈👈👈💕
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विरोधाभास
ख़्वाब खंजर, धरा बंजर,
मन खंडहर, विचार समंदर,
जैसे रहता है एक बवंडर,
दिल के अंदर,
फिरता आवारा सा वो दरबदर...
है चारों ओर इक शोर,
फिर भी हो जैसे कोई शांत सी भोर...
अँधकार से भी रोशन है,
जैसे मन का इक कोना,
रोशनी में भी जैसे,
काला सा धुआँ उड़ाता वो ग़मों का एक दोना...
क्षणभर के लिए ही सही,
बन गई है जैसे दास्तां कोई अनकही,
जीवन का ये विरोधाभास,
जैसे मन की एक नई सी आस!-
मुझे हरिशंकर परसाई के निठल्ले जितना
कर्मठ बनना है!
फिर मैं भी लिख सकूँगी की मुझे कर्म में अरुचि
क्यूँ हो गयी।-