अक्स   (अक्स 🍁)
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Joined 7 August 2020


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27 APR AT 7:46

किताबों के बीच पड़े पड़े
सूख गया था ,

यूँ लगता है
बिना हवा , बिना पानी
दम इसका घुट गया था ,

( क्रमशः )

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26 APR AT 23:18

"गुनाहगार" ही साबित कर दिया था "दिलजलों" ने मुझे
"कीचड़" भी खूब "चरित्र" पर था "उछाला"
भला हो "माननीय" का जिन्होंने आज "बाइज़्ज़त" "बरी" कर मुझे
"पुनर्जन्म" है कराया ll

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23 APR AT 23:57

तब होगी
अभी उसके एहसास में जीने दो ,

इजाज़त जब मिलेगी तब मिलेगी
अभी उसके ख्याल में जीने दो ,

और सुनो बात ज्ञान की
नहीं करनी मुझे अभी खुमार ही ठीक है

छोड़ देंगे हम भी करना कल नशा
आज पूरे शबाब में मुझे जीने दो ll

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22 APR AT 21:36

तो सुलझा देता
यूँ "उलझने " सारी ,

"ख़त्म" ही हो जाती
फिर कभी तुम्हारे
"उलझने" की बारी !!

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21 APR AT 23:19

जो पूरे दिन हम "पढ़े" थे l

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21 APR AT 22:10

"हसरत"

"हक़ीक़त" हो ही ना सकी l
बस इंतजार दे गई
"अनंत" सी
हाँ
"अनंत" सी ll

😊

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21 APR AT 21:12

"वक्त" रूपी "बर्फ़" के पड़ते ही
"उतर" जाता है
यक़ीन नहीं आए
तो थोड़ा "बर्फ़" ले आना
"माथे" पर लगाना
फिर बताना
"बुखार" , "उतरा" की नहीं ?

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21 APR AT 12:02

जाने अनजाने ही सही , थोड़ा मिला कीजिए ,
गाहे बगाहे ही सही , थोड़ा गिला कीजिए ,
ये दौर तनाव का है , और तनाव की रफ़्तार है बहुत ही तीव्र , निगल जाएगा
चाहे अनचाहे ही सही , थोड़ा हिला मिला कीजिए ll

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20 APR AT 23:23

मुखर होते ही ख़त्म हो जाती है l

बस बात इतनी सी
चुप रहने के दौरान , समझ नहीं आती है ll

और पसरते पसरते यही चुप्पी
वक्त के साथ साथ
असह्य होती जाती है
फिर आहिस्ता आहिस्ता घुटाते घुटाते
वजूद निगल जाती है ll

चुप रहने की घुटन
मुखर होते ही ख़त्म हो जाती है l

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20 APR AT 21:47

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