अपनी कमजोरियों को यूँ ही,
हर किसी को बयाँ न कीजिए।
अक्सर जब रिश्ते बदलते है
तो तारीफों से तानों के सफ़र की दूरी
बहुत कम हो जाती है।
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Born from struggle.....
Living with struggle......
Die after struggle.....
But My Struggle
gave me Vivacity..... ❤❤
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That day when you gave it to me
My heart you just took it from me
Those memories we shared
Happiness, love and care
I have kept it safe in my heart
Though our circumstances made us apart
Whether the fragrance will no more exist
The Colour will also get fade away
But in my life I will fullfill our
promises and vows
That why my love ❤......
I still have your rose 🌹-
ख़ुदको मनाया बहला फुसलाकर,
अब सब कहने सुनने की रीत गई,
दिल पर लिखे ज़ख्मो को,
जब मैं कागज़ पर लिखना सीख गई ।।
उन सारे अरमानों को
जिन्हें रंगों से सजाए थे मैंने,
दुनिया से परे एक घर में
कुछ सपने बसाये थे मैंने,
मैंने तोड़ दिये मैंने छोड़ दिये,
ख़ुद ही हारी और जीत गई ।।
दिल पर लिखे ज़ख्मो को,
जब मैं कागज़ पर लिखना सीख गई।।
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क्या शिक़वा करू..... क्या शिकायत करू.....
सब इस दिल से ही तो खेलने आते है,
हँसी तो तब आती है "सहज़" आँखों में नमी लेकर,
जब मेरे अपने मुझे मोहब्बत दिखाकर आजमाते है-
ये वक़्त.....
अब किसी के छूटने का मलाल नही मुझको
ख़ुदको पाने की तलब, जो सबसे ज्यादा है.....-
हश्र ( कोविड- 19 )
बुरा ना बेरहम, और ना ही मैं बदनसीब था,
जो हुआ मुझे, ना ही वो मेरा रक़ीब था,
एहसास तो तब हुआ, खुली आँखे थी मेरी,
था मैं बेज़ान पड़ा, दफ़नाने ना जलाने वाला कोई करीब था ।।
एक महज़ बीमारी ने, करीबियों से दूर कर दिया,
था मैं गुमनाम भीड़ में, एक पल में मशहूर कर दिया,
काँधे के लिए चन्द, मुझे मेरे अपने न मिले,
सड़क पर फेंक, सड़ने पर मजबूर कर दिया ।।
ना देखी जात-पात, ना इसने धर्म देखा,
आघात कर सके, सिर्फ ऐसा मर्म देखा,
गोरा-काला, अमीर-गरीब सब एक थे,
क़ातिल था वो, सिर्फ खून गर्म देखा ।।
खुली आँखों को अब भी, मेरे अपनो का तलाश था,
मैं था क़ैद लिपटा हुआ, प्लास्टिक का मेरा लिबाज़ था,
धन-दौलत, मेरी काया, मोह-माया सब यही छूट गई,
अब इस ज़माने से मैं, बस दो गज़ ज़मीन का मोहताज़ था ।।
संघर्ष थी मेरी ज़िंदगी, संघर्ष बन गुज़र गई,
बनते बनते खुशियों का घरौंदा, तूफान में तिनको सी बिखर गई,
हम बेबस थे यूँ, "सहज़" कि कुछ कर न सके,
ज़िन्दगी तेज़ी से मिटी, फिर शब्द बन कब्र पर उभर गई ।।
–--------------सोनिया द्विवेदी------------------
आँखों मे दर्द, दिल पे दिये ज़ख्म ज़रा कम थे,
जो मेरे हमदम थे, थोड़ा सा बेरहम थे,
मग़रूर कर, मशहूर कर, महरूम कर "सहज़" वो चल दिये,
कभी जो बनते मेरे घाव के मरहम थे, अब थोड़ा सा बेरहम थे।
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मेरी ख़ामोशी बयाँ करती है, मेरे हर राज़ को,
मेरी तकलीफ़,मेरा दर्द,मेरी गर्दिश, मेरे कल आज को,
माना मैं चलना सीख रही हूँ, लड़खड़ा के राहो में,
यक़ीनन मेरे ज़ख्म लिखेंगे, मेरे सुनहरे आगाज़ को।।-