Kitni asani se log dusron pr ungli uthate waqt...
Apni aur ki 3 ungliyon ko nazarandaz kr dete hain..!!
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हवाओं ने भी कही होगी,,
दीवारों ने भी सुना होगा,,
जरा अफवाह क्या उडी़,,
उगलियां तो राजदारों पर ही उठी...।।-
कभी कभी उंगलिया तो थक जाती है
पर अधूरी बात जो मुझे सोने नही दे पाती है
इसलिए मैं फिर से कलम उठाती हूँ
जब आधी रात आँख खोल मैं फिरसे लिखने लग जाती हूँ-
ये जो नादान मेरे किरदार पर उंगलियां उठा रहे है आज,
कल को मुंह छुपाते फिरेंगे अगर जो खोल दिए मैने उनके राज,-
एक लम्हा जो आकर ठहरा हैं
हर पल यादों में तेरा चेहरा हैं
गुरुर था तुझे तेरे होने पर
आ देख तेरे बिना भी आज शेहरा हैं !-
मन्दिर से शंख नाद , मस्जिद से अजान जाती रही .
तेरी रुख्सती क्या हुई मेरे जिस्म से जान जाती रही .
इश्क़ रूहानी था मेरा और उसे जिस्म की हसरत थी ,
मैं नजरें मिलाता रहा वो बदन पे उंगलिया घूमाती रही.-
हाथों की उंगलियां कभी एक जैसी नहीं होती!...
हर एक उंगली दूसरी उंगली से अलग दिखती है,
हम इंसान भी उन उंगलियों जैसे है, हर एक इंसान दूसरे इंसान से अलग है फिर उनकी सूरत हो या सीरत!.....
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क्यों उठाते हो तुम, मेरे अतीत पर उँगलियाँ?
मेरे तन्हाई में रहने की थीं कुछ मजबूरियां
अब छोड़ों बेकार की बातों को
जो बीत गया, सो बीत गया
अब आज हूँ मैं जो, उस पर यकीन करो।
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दुख में स्वयं की
एक उंगली आंसू
पोछती है और
सुख मे दसो उंगलियां
तालियां बाजाती है
जब स्वयं का शरीर ही
ऐसा करता है तो
दुनिया से गीला - शिखवा
क्या करना ?-
अक़्सर वही लोग उठाते हैं हम पर उंगलियाँ,
जिनकी हमें छूने की औकात नहीं होती-