मानो एक जंग होती है खुद से
हर सुबह
ख्यालो से
यादो से
बातों से
और सबसे
बदतर
खुद से।।-
जो सोते हुवे भी जगा देता है ।
कैसे होती है पल पल पहर,
अब तो हर कोना अधूरा से लगता है ।।-
तुम लिखोगे तो रात में ही,,
मैं सुबह की दस्तक कैसे बनूँगा ।।
वो एक अल्फ़ाज़ जो अधूरा है,
तुम्हारे बिना पूरा कैसे करूँगा ।।-
लिबासों से कहा सादगी मालूम होती है,,
असल चादर तो मन का पहनावा है।।-
आज उदासी आंखों में,,
एक आस को लेकर भीग गयी ।
जो रात की चादर ओढ़े थे,,
वो रात गयी पर नींद नही ।।-
क्यो लगा कि कहानी से वाकिफ नही हम ।
जुड़े है तुमसे बस जाहिर नही हम ।।
हम ही तो जाने नही देते धूल तुम्हारी आँखों मे,
कैसे लगता है कि तुम्हारे काबिल नही हम ।।-
कही गुम हुवे मोती, कही बिखरते साये ।
अब रहा कौन साथ, जो पास बुलाये ।।
शाम की चादर ओढ़े ,ये दिन ढला जाए ,
एक भटकता मुसाफिर ,अब नींद कहा पाए ।।-
एक शब्द तेरी खामोशी का,,
एक शोर तेरे सन्नाटे का ।
हर पल गुजरे यादों से,
ये विरह का सौदा घाटे का ।।-
नदी नीर का शांत बहाव ।
झील में एक रस ठहराव ।।
एक राह जिसमे कही न छाव,
माथे पर धारे रंज भाव..।।-