नाराजगियां इतनी भी न किया करो कि,
कोई रूठकर चला जाए उम्र भर के लिए।-
हम कर लेते विश्वास तुम्हारी हर बात पे लेकिन, इतने भी तुम सच्चे नहीं थे।
मिलने को तो मिल सकते थे हम, पर इरादे आपके भी कुछ अच्छे नहीं थे।
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तुम वो ग़ज़ल हो मेरी जिसको बिन लय ही गुनगुना लेता हूँ मैं।
गर मायूस भी होता हूँ कभी, तुम्हें पढ़कर मुस्कुरा लेता हूँ मैं।
तेरे खामोश लफ़्ज़ों से भी बेइंतहा मोहब्बत है मुझे।
न ढोलक, न तबला कोई, बिन साज ही गा लेता हूँ मैं।
जब जाना मेरे दिल के भावों को तुम समझोगे नहीं।
तब तुम पर लिखी ग़ज़ल को भी छुपा लेता हूँ मैं।
-Rinki singh✍️
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उजड़ा-उजड़ा है चमन, बिछड़ गया इस बाग का माली।
तुम बिन होली भी बेरंग रही, हम कैसे मनाएं दीवाली।-
कुछ लोग इत्तेफ़ाक़ से मिल जाते हैं कभी-कभी
बिछड़ना तो नहीं चाहते, बिछड़ जाते हैं कभी-कभी
कोशिशें किया करता हूँ मैं अक्सर मुस्कुराने की
पर महफ़िल में अश्क़ निकल जाते हैं कभी-कभी।
-रिंकी सिंह✍️
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कोई समझे मेरे जज्बात मुझे नहीं किसी से आशा,
सब कहां समझते हैं आख़िर! गजलों की भाषा।
तुम सुनना मेरे गीत और समझना हर शब्द की परिभाषा।।
-रिंकी सिंह✍️।
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गर मिलेगा मुझे वो
जिसे सब खुदा कहते हैं
पूछुंगी इक सवाल उससे,
दुआएं कुबूल करने के लिए
बदले में आप क्या लेते हैं?
जब किसी फ़क़ीर की दुआ से
करना ही होता है विश्वासघात
फिर दुआ और प्रार्थना जैसे
शब्दों को अर्थ ही क्यूँ देते हैं?
जिनकी हो जाती हैं
सब दुआएं कुबूल,
पूछुंगी उस खुदा से
दुआएं कुबूल होने के
बदले में वो लोग
तुम्हें क्या देते हैं?
पूछुंगी इक सवाल उससे
जिसे सब खुदा कहते हैं।
-रिंकी सिंह ✍️
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जब अत्यंत भावुक हो मन और आंखों से बहती हो सरिता।
उस वक्त तुम लिखना कोई ग़ज़ल या लिखना कोई कविता।।
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जिन्दगी के बुरे से बुरे वक्त में भी तुम करते रहना प्रयास।
क्या पता तुम्हारे संघर्षों पर भी लिख दे कोई उपन्यास।-
सब अपनी-अपनी जिंदगी में जीत रहे हैं।
पर मेरे तो अभी दर्द भरे दिन बीत रहे हैं।-