उन बेजुबानों की छोटी सी उम्मीद....
एक रोटी का टुकड़ा ....🥪🥯
. एक बार जरूर पढ़े ...
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Meri mohabbat ko wo kuch is tarah parkhta hai ki Mujhi se bewafayi kar wo mujhi se wafa ki umeed rakhta hai
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जिन रिश्तों में सफाई देनी पड़े
उन रिश्तों को तोड़ देना ही बेहतर है-
वसीयत हस्ताक्षर मांग रही है.
गांव के मुहल्ले में शहर वालों
हम अनपढ़ है कहां कर पायेंगे.
पेशा होगा ये शहर में तुम्हारा क्यों?
पैसे से बस्ती खरीदने चले हमारी.
ये इमां वाले है सहाब कहां बेच पायेंगे.
अंगूठा लगा देते हम अगर
स्याही ये मिलाबटी ना होती .
मरा जमीर, गजब बाधे पे
हम वाह कहां कर पायेंगे.
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उन दिनों वो इन्तज़ार भी हसीन लगता था जनाब,
अब तो उनके आने की उम्मीद भी खत्म हो गई ।-
Baat ye nehi ki khudko badalna muskil hai,,
bas dikkat ye hai ki sab kuch badal jayega.....-
Man ki khidki khol
Ek naya sawera ek nai umeed tumhara intzaar kr rahi rhi hai....
Na-umeed mt ho apni koshisho se
Kismat bhi imtihaan leti hai kamyabi dene se pehle.....
Man ki khidki khol
Tanhaai or akelepan se bahar nikal....
Tu apne kal ko bhoola kr aaj ko jee.
Ek nai soch tujhe aage le jayegi
Apne man ki khidki khol....-
ये मोहब्बत का जाम है,
या ढलती मेरी शाम!
आँखों मे लौट आने की उम्मीद
और होठों पर तेरा नाम।
गर्दिशों में है आज हमारे सितारे,
और दिल मे एक अलग तूफान।
निभाता रहूंगा वफ़ा बस तेरे लिए,
जो है उम्रभर का मेरा काम।
मोहताज नही रहा अब ये दिल
किसी और के मोहब्बत का,
तेरी मौजूदगी ने दिया जबसे,
इस शख्सियत को मुख़्तलिफ़ पहचान।
यादों के संग अब बितानी है ज़िन्दगी
तेरे बिना वक़्त गुज़रना होगा न आसान
तकल्लुफ़ के लिए हमें माफ़ करना
हिचकियों में अक्सर करता रहूंगा परेशान।-
भरोसा तो आज भी करते हैं हम कुछ लोगों पर....
लेकिन उम्मीद तो अब हम खुद से भी नहीं करते ll-