कैसा जाम सुराही कैसी भूल गए मयख़ाने लोग,
देख के तेरी आँखे साक़ी तोड़ गये पैमाने लोग..
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हो बे-नक़ाब शम'अ तो परवाना क्या करे,
जल कर न दे जो जान तो दीवाना क्या करे..??
साक़ी शराब जाम सुराही के सामने,
मजबूर है ये फ़ितरते रिंदाना! क्या करे..??
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Surahi sa jism tha aur libass bhi gulabi,
Bs chera na dykh paye uska kal raat ke khawab mein.-
सुराही से अब प्यास नहीं बुझती
चलो चलकर फ्रिज ले आए
फ्रिज से अब बिमारियाँ नहीं रुकती
चलो एक बार फिर से सुराही के दौर में खो जाएं।-
तख़्त ए ज़िन्दगी पे, वक़्त की सुराही से गिरी चंद बूंदें पानी की तरह फैली हुई रुक सी गयीं हैं,
कोई ढलान नहीं है जहाँ वहीँ पर।
इंतज़ार में हैं के कब कोई तख़्त हिलाये और कब बह जाये वो अपनी रवानी लिए,
और मिल जाये बाक़ी के वक़्त के साथ।
वो वक़्त की चंद गुस्ताख़ सी छीटें पानी की तरह फैली हुई रुक सी गयीं हैं, कोई ढलान नहीं है जहाँ वहीँ पर।-
आधी सुराही खत्म हो गई पर आधी तो अभी बाकी है
हमे वफा है नशे से.... की हमारा वफादार ही साकी है-
Tera mera ishq ek kahani hogaya
Jis dil ne usse suna vo asmaani ho gaya
Jab jab badi garmi gumo ki mere dil me
Ye surahi se nikla vo shital sa paani ho gaya❤️❤️❤️.....-
कहाँ खिलते हैं वो गुलज़ार
कहाँ बिखरती हैं राते
गुम सी हो गई जो कभी खत्म ना होती थी वो बातें
सिमट सी गई है जिन्दगी
नहीं होती रोज-रोज मुलाकाते
उजड़ी विरान हो गई वो होदी
जहाँ हम सब मिलकर थे नहाते
नही दिखते घोसले
बेरीयो पर चिडियों की चिड़-चिड़
उठाकर ड़न्डा उडानें जिसे जाते
इस धूप में वो गर्मी ही नहीं
जेठ का महीना बैठ कुछ पल जण्डियों के नीचे बिताते
नरमे का घना हरा सा खेत
उसी में लुका-छुपी का खेल- खेलाते
अरसे से देखी ही नहीं सुराही
ओझल हो रहा है कोरा मटका
जिसमें मेंहमानो को पानी थे पिलाते
गुम सी हो गई
जो कभी खत्म ना होती थी वो बातें-
लिखा है जब से तुम्हें इश्क़ की सियाही से।
चखा है जाम फिर से फ़िक्र की सुराही से।।-
Yaad karta hoon to gala sookh jaata hai
Wo mitthi ki khushboo waala suraahi ka pani-