बहुत मसरूफ है रातें मेरे महबूब की शायद।
मेरे ख्वाबों में भी आये उन्हें एक अरसा हो गया।।-
Engineer by profession.
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एक भीड़ आती है आँखों में नफ़रतें लिये।
और गिरा मस्जिदों के उसने ईमारतें दिये।।
सभी मौन रहे जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
और आँखें बंद कर के जनतंत्र जपते रहे।।-
ना गाँधी का ख़्वाब,ना भगत सिंह का इन्क़ेलाब देखा है।
मैंने जंग-ए-आज़ादी नहीं देखी पर शाहीन बाग़ देखा है।।-
महसूस उसने भी की होगी मेरी साँसों की गर्मियाँ।
सर्द आहों को भी उसके सुकूँ आया होगा।।-
पूछते है वो कि ग़ालिब कौन है।
शायद शायरी से नहीं हुआ है कभी सामना उसका।-
अब तेरी आदत सी हो गयी है मुझे।
अब इसे लत कहूँ या इश्क़ बेपनाह।।
अब नहीं मुझपे है कोई बस मेरा।
अब यही इबादत है और गुनाह।।-
जीने की दुआ देकर हमको।
मरता हुआ उसने छोड़ दिया।
तासीर हुआ फिर उसका यूँ।
ना ज़िंदा रहा ना मरने दिया।।-
आसमानों का ख़्वाब देखने में बस एक ही दिक्कत है।
कि कोई रास्ता वहाँ तक नहीं जाता।।-