लताफ़त जब रगो-पै में सरायत हो ही जाती है,
ग़ुरूरे-हुस्न पर आइद नज़ाक़त हो ही जाती है..
कोई ग़म शेर बनता है कोई बनता है अफ़साना,
ग़मे-दौरां के बाइस ये करामत हो ही जाती है..-
उर्दू में दिलचस्पी... read more
شہر بھر کی یہ اداسی نہیں دیکھی جاتی،
کوئی ہنستی ہوئی تصویر لگا ڈی پی پر۔۔
शहर भर की ये उदासी नहीं देखी जाती,
कोई हँसती हुई तस्वीर लगा डी.पी. पर..!!
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पूरी ग़ज़ल कैप्शन मे पढ़ें..
रात की शाख़ पे उग आया है सन्नाटा,
ख़ौफ़ के मंज़र बाट रहा है सन्नाटा..!!-
چراغ اپنی منڈیروں پر جلاتا ہوں سلیقے سے،
ہوا کا رخ بدلنے کا ہنر مجھ کو بھی آتا ہے۔۔!!
चराग़ अपनी मुंडेरों पर जलाता हूँ सलीके से,
हवा का रुख़ बदलने का हुनर मुझ को भी आता है..!!-
وہ جسکی رسم لہو سے دئے جلانا ہے،
وہی ہے میرا قبیلہ وہی گھرانہ ہے۔۔!!
वो जिसकी रस्म लहू से दिये जलाना है,
वही है मेरा क़बीला वही घराना है..!!-
पूरी नज़्म कैप्शन में पढ़ें
कहूँगा तुम से मैं ये सब
कभी सोचा ना था मैंने..!!-
गौहर-ए-नायाब लाते थे समुंदर चीर कर,
इश्क़ में उतरे तो गहराई का अंदाजा हुआ..!!-
गर मिरे इश्क़ में सदाक़त है,
आज़माने की क्या ज़रूरत है..
आज़माइश जहाँ ज़रूरी हो,
वो मुहब्बत! कोई मुहब्बत है..??-
इक आईने की तरह था मगर ग़ुबार में था,
वो शख़्स कब से मिरे ख़्वाब के दयार में था..-
ज़ख्म-ए-दिल आज फिर हरा कर के,
ग़ैर का मुझ से तज़्किरा कर के..
वहशत-ए-दिल से आशना कर के,
वो गया मुझ को ग़म-ज़दा कर के..
सोच में डाल बे-वफाओं को,
खुद को इक बार बे-वफ़ा कर के..
वो कई बार मुझ से बिछड़ा है,
फिर से मिलने का रास्ता कर के..
क्यूँ बहाने तलाश करते हो,
घर से निकलो तो फ़ैसला कर के..
ग़म का वो तज्ज़िया ना होगा अब,
जो गये जॉन एलिया कर के..
आप ज़ोहेब की ग़ज़ल देखें,
कह गया है ख़ुदा ख़ुदा कर के..-