वो स्त्रियाँ..
जो सम्मान के अभाव में
खो देती हैं शालीनता और सहजता
वो करने लगती हैं सम्मान
'विरोध' और 'विद्रोह' का और
अपना लेती हैं
'क्रांति' के समस्त गुण..!-
हाँ मैं स्त्री हूँ।
मैं रिश्तों के कुरूक्षेत्र में अपने आपसे लड़ती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
कभी हमारे मन की गाँठ को खोल कर पढ़ो।
मैं तुम्हारे साथ जी उठती हूँ, महक उठती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
माना कभी आपके साथ नहीं रहती पर
हर लम्हा आपका साया बन रहती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
मैं अपने जीवन के सपने आपके साथ देखती हूँ
और उसे प्यार से खुशियो से सजो लेती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
खुद कि तकलीफ खुद ही सह लेती हूँ।
अपने सपनो को दूसरे की ख़ुशी के लिए तोड़ देती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
कभी-कभी जब बहुत दु:खी होती हूँ,
और खुश होती हूँ तो जी भर के रो लेती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।-
नही चाहती में बंदिशे,
में आजाद होना चाहती हूं
फैलाकर अपनी बाहें में
तूफान बनना चाहती हू
नहीं बनना सीता मुझे,
ना अपनी पवित्रता का
प्रमाण देना चाहती हूं।
ना बनना है राधा मुझे
ना वियोग में जीना चाहती हूं
नहीं छिपाना चाहती में अपने दर्द,
ना ही तमाशा बनना चाहती हूं
ना ही बनना है मीरा मुझे
ना किसी और की तलाश में जाना चाहती हूं
मे भी खुलकर जीना चाहती हूं,
सिर्फ स्त्री नामक मूर्ति नहीं
में इंसान बनना चाहती हूं।
©Aishwarya Rai
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जीतना ही है तो स्त्री का दिल जीतिए....
एक दिन वो स्वयं आपके समक्ष सर्वस्व हार जायेगी....
❤️❤️❤️-
तुम्हारे दाग़ अच्छे हैं🙌🏻🙌🏻🙌🏻
🙏🏻कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें🙏🏻
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स्त्री
अपने जूड़े को बांध कर
गुस्से को समेट लेती हूं
परिवार की खातिर
खुद को साड़ी के पल्लू में
लपेट लेती हूं
और बेलने लगती हूं
पूनम के चाँद सी
गोल रोटियां
यही प्रमाण है
मैं कितनी सहनशील हूं-
आदर्श स्त्री के ढांचे में
फिट होती औरतों से ज्यादा
प्राकृतिक हैं
मुंहजोर
लड़ती झगड़ती औरतें ।।-
ये बिंदी...
तुम्हारे प्रेम का
प्रतीक ही नहीं,
परन्तु यह मेरा
तीसरा नेत्र भी हैं!
अर्थात...
सृष्टि की हर
प्रेमपूर्ण स्त्री के भीतर
व्याप्त हैं...
एक प्रलयकारी रूप शिव का!-