PRIYANKA CHANDRA  
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Joined 22 July 2020


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3 HOURS AGO

मैं क्या ही करूंगी अथाह समंदर के साहिल पर बैठ
मुझे तो तलब तेरे हृदय में उतरकर डुब मरने की है।।

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30 JUL AT 14:22

जब भी मैं लिखने बैठूं तो,मदहोशियों
का आलम ऐसा होना चाहिए,
किसी मदिरे का नहीं,बस मुझ में नूरानी
हर्फ़ों का नशा होना चाहिए।।

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29 JUL AT 18:36

दिल को आराम,धड़कनों को नया आयाम दे चुकी हूं
ज़िंदगी के आखिरी पते पर तेरा बस नाम दे चुकी हूं।।

सहर सी मेरी आंखों को नींद कभी मुकम्मल ना हुई
मैं तड़पते हुए शब को तेरी बाहों के शाम दे चुकी हूं।।

रूह की समग्र बंजर जमीं यूं तो सदा ही प्यासी रही
तेरे आगमन को चौमासे में,हरित क़याम दे चुकी हूं।।

ये सात जन्म,सात वचन तुम जमाने के लिए छोड़ दो
तू आ देख मैं तेरे लिए अपनी उम्र तमाम दे चुकी हूं।।

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27 JUL AT 20:54

बेज़ार होकर तुम मुझ में ढूंढते होगे उल्फ़त लैला सी
लेकिन मैं सुकून से तुझ में बस तुझको ही ढ़ूंढती हूं।।

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25 JUL AT 13:52

ब्रह्माण्ड की सुंदरतम् ध्वनियों
में सर्वश्रेष्ठ है वो ध्वनि जब एक
मां अपने गर्भ में पल रहे बच्चे
की धड़कन को स्वयं में अनुभव
कर प्रथम बार,बारंबार सुनती है।।

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23 JUL AT 22:58

अब खत्म हुआ वो रूठने और मनाने का दौर
वक़्त है नज़रअंदाज़ का,नज़रअंदाज़ कीजिए।।

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11 JUL AT 13:30

मैं लेखिका..मेरी कविताओं में हर एक मौसम का ठहराव है,
मैं यूं बस वरक़ पर सिफ़त सावन के लिख सकती नहीं।।

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10 JUL AT 10:35

बाअदब मैं भीग जाना चाहती हूं तेरे इश्क़ की बारिशों में,
तू अब आ सनम संग अपनी नज़रों का बादल लेकर।।

तेरी संजीदगी ने हमें पहले से ही बेचैन सावन सा किया है,
तू अब छा सनम मुझ पर मेरी अंबकों का काजल लेकर।।

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8 JUL AT 7:54

उनींदी से भरी आंखों में रास्तों के नियात ना मिले
सफ़र मिला मुझे लेकिन उससे ख़्यालात ना मिले।।

जीवन की उलझी मृगतृष्णाओं में मैं जी लेती मगर
मन को मोहलत ना मिली, हृदय को हालात ना मिले।।

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7 JUL AT 15:38

मेरे लिए प्रेम की परिभाषा
और अर्थ बस इतना ही है
कि मैं तुम्हारे नाम के इन
एड़ियों पर लगे हुए लाल
अलक्तक से लेकर मांग में
सजे हुए सिंदूर के साथ साथ
जिम्मेदारियों के इत्र से भी
सदा यूं ही महकती रहूं।।

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