PRIYANKA CHANDRA  
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Joined 22 July 2020


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Joined 22 July 2020
9 JUN AT 16:47

हर दफ़ा मैं बेझिझक हो अपने हृदय को, तह तक खंगालती रही,
फिर क्यों मुझे मेरे मन को, इक दफ़ा खंगालना यूं बोझिल कर गया।।

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31 MAY AT 20:14

मेरी कविताओं में सदा से ही तत्सम-तद्भव बाग से महकते हैं,
यूं तो कभी इंग्रजी इत्तर शीशियों का मुझे शौक़ रहा नहीं।।

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25 MAY AT 19:19

यहां समग्र ऋतुओं को जीने के लिए सृष्टि सा सार चाहिए,
निस्वार्थ प्रेम दर्शाने वाला स्वतंत्र आकाश सा आचार चाहिए।।

बिजली के थाप पर थिरकते हुए ,अधिकार से बरसेंगी बूंदें,
बस उसे अपने पसंदीदा बादल का वो सोलह श्रृंगार चाहिए।।

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6 MAY AT 11:46

किसे आरज़ू थी कि शहर की बेचैनियां मिलें मुझे
मुझे तो एक गांव चाहिए था सुकुन से भरा हुआ।।

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6 MAY AT 8:07

कभी फुर्सत से कुछ पल निकालना मेरे लिए
तुम से बातें नहीं, जी भर कर देखना है तुम्हें।।

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5 MAY AT 23:19

अब कौन जाए खुद को रोज हर पहर संवारने आईने में,
बस तुम यूं ही सदा अपनी आंखों से मेरा श्रृंगार करते रहना।।

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2 MAY AT 23:03

मुझे एक ऐसी नदी नहीं बनना है जो समंदर में मिलकर अपना वज़ूद हमेशा के लिए खो देती है बल्कि वह नदी बनना है जिसके जलप्रवाह का इंतजार समंदर को छोड़ सम्पूर्ण सृष्टि करती हो।जिसके आगमन से धरा पर बसंत आये, समस्त जीवों में उल्लास हो, जिसकी मौजूदगी और स्थायित्व हर तरफ ,हर कण में विद्यमान हो।।

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29 APR AT 11:06

तू मुझसे यूं रूठकर रुख़सती ना ले
मेरे करीब रह,मेरी पनाहों में तो आ।।

मैं हूं अकेली तू मौसम चार है ठहरा
मुझको बहारें दे,मेरी बांहों में तो आ।।

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28 APR AT 18:24

.....

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21 APR AT 22:04

यूं रोज-रोज मैं क्या ही लिखूं तेरे वज्ह को हमदम
मुझे डर है कहीं ये चांद तुझ से रश्क न कर बैठे।।

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