PRIYANKA CHANDRA  
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Joined 22 July 2020


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12 SEP AT 12:02

इतिहास के पन्नों में उनके नाम जाने पहचाने गये, स्वर्णिम अक्षरों में लिखे गए,जो किसी आंदोलन और अभियान के प्रणेता रहे और उन लोगों के नाम, पहचान हमेशा के लिए गुम हो गए जिन्होंने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया इसको सफल बनाने में।
ना जाने कितने सैकड़ों और हजारों की संख्या में लोगों ने अपना दिन और रात एक कर दिया होगा तब जाकर आज यह हम सबके सम्मुख एक प्रेरणा के स्वरूप है।जीवन सबका अमूल्य है फिर चाहे वह कोई भी हो, सबको एक समान सम्मान मिलना चाहिए।

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10 SEP AT 15:29

तू साकी,तेरी ये निगाहें लगती हाला हैं
अपना जादू तूने मुझ पर कर डाला है।।

मेरा दिल तेरी दस्तक़ से मुकद्दस हुआ
मेरे मन के जन्नत की तू हीं सुरबाला है।।

तुझ पर नज़्म लिखने की है आरज़ू मेरी
मगर,वरक़ पर इक तस्वीर तेरी आला है।।

जो रूख़्सार पर हैं गेसुओं के घने परदे
तेरा चिलमन है या है लगता ये जाला है।।

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6 SEP AT 20:37

अंग्रेजी के महिनों के बीच सितंबर
कुछ अर्थ हिंदी शब्दों का कहता है,
जहां सित दर्शाता है श्वेत और स्वच्छ
वहीं अंबर में शब्द आकाश रहता है।।

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5 SEP AT 17:12

ये जरूरी नहीं कि जो शिक्षित हैं या फिर पेशे से शिक्षक हैं सिर्फ़ वह ही हमें ज्ञान या शिक्षा प्रदान करते हैं, इसका कोई एक निश्चित मापदंड नहीं क्योंकि यह जन्म पूर्व गर्भावस्था से अपनी मां के द्वारा होते हुए मृत्यु तक किसी से भी किसी भी अवस्था में ग्रहण होती रहती है।
आज के इस आधुनिक युग में आप जितना पैसा खर्च करेंगे उतनी बेहतर शिक्षा आपको प्राप्त होगी अन्यथा नहीं,कहने का तात्पर्य यह है कि उच्च और महंगी शिक्षा सिर्फ धनाढ्य वर्ग के लिए रह गई है, निम्न वर्ग को तो जो मिल रहा है वह भी छिना जा रहा, कुछ समय पश्चात वह बीता काल पुनः जल्दी देखने को मिलेगा जब शिक्षा तो दूर की बात है,खाने पीने को भी नहीं मिलता था निम्न वर्ग के लोगों को।

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5 SEP AT 15:58

प्रेम के वियोग में तड़पकर या छले जाने पर जिसने भी संन्यास धारण किया,उसे ईश्वर की शरण में कभी भी स्थान नहीं मिल सकता और ना ही उसे मोक्ष प्राप्त होगा कभी,क्योंकि भोग विलास और सांसारिक सुख की कामना करने पर जिस व्यक्ति को वह प्राप्त नहीं होता तो वह उसका अपना व्यक्तिगत दुःख हुआ, उसने सब कुछ त्यागने का निर्णय आवेश में आकर किया।।
वहीं दूसरी तरफ अगर हम ईश्वर के प्रेम और भक्तिभाव में होकर संन्यास धारण करें तो वह हुआ निस्वार्थ भाव से मोक्ष के मार्ग पर बढ़ना, जहां हमें किसी भी चीज़ की कामना नहीं रह जाती,हर तरफ हमें ईश्वर ही दिखते हैं,वह ऐसा समय होता है जब हम सभी सांसारिक सुखों को प्रेम पूर्वक त्यागते हैं,मन में किसी के लिए कोई द्वेष भावना नहीं रह जाती।।

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4 SEP AT 17:34

मेरे लिए ये मायने नहीं रखता कि
गेसुओं में लगा हुआ हर फूल महके
बल्कि मायने रखता है उन्हें गेसुओं
में टांकते हुए तुम्हारा सदा महकना।।

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4 SEP AT 9:01

हम स्त्रियों के लिए घर के अन्दर
की सुख सुविधाएं ठीक वैसी ही
हैं जैसे पिंजरे में क़ैद किया गया
कोई पंछी,जिसे समय समय पर
पिंजरे के अंदर सारी चीजों की
उपलब्धताएं प्रदान की जाती हैं,
लेकिन कभी भूलकर भी पिंजरे
के बाहर अकेला नहीं छोड़ा जाता।।

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3 SEP AT 13:54

अब किस को इतनी फुर्सत कहां कि
यहां कोई किसी का भी यूं हाल पूछे।।

जिसे दिल से क्षितिज भा गया हो वो
फिर क्या जमीं,ये आसमान क्या पूछे।।

गर्दिश में ज़िंदगी गुजर रही है जिसकी
वह सुकून के अब बता दाम क्या पूछे।।

इंसानियत के वास्ते गुज़ारिश कौन करे
जलती क्षुधा जहां से आमाल क्या पूछे।।

जीने की है जुस्तजू,मरने का मलाल नहीं
गरीबी के लिए खुदा से सवाल क्या पूछे।।

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3 SEP AT 8:49

बरसने को तो दोनों ही बरसते हैं लेकिन
सावन का दर्द बीता आषाढ़ क्या जानें।।
जब कण्ठ चाहे तर होने के लिए नीर को
उस प्यास को आंखों की बाढ़ क्या जानें।।

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2 SEP AT 22:58

तुझे लिखी सिसकती हुई मेरी चिट्ठियों को,शहर
भर में एक भी मुकम्मल डाकखाना ना मिला।।
मुहल्ले,दयार कितना ढ़ूंढ़ीं लेकिन अफ़सोस,तुझ
तक जाने वाला डाकिए का ठिकाना ना मिला।।

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