अक्सर पुरुष की आंखे आकर रुक जाती हैं
स्त्रियों की वक्षों पर , नाभी के गाहराई पर ,
उनके होठों पर । दूर से ही वह देह की
छुपी तृष्णा को तलाश रहा है ।
एक देह !
और जब सामने मिल गया , तो
वह नेत्रों की ही तृप्ति से तृप्त हो रहा है ।
और यही हो जाता है देह प्रेम ।
पुरुष प्रेम में नहीं देह में स्थित है ।
ज्यादातर स्त्रियां मान लेती है
ईश्वरीय प्रेम । वो ये नहीं जान पाती
कि देह आकृति समय के साथ
परिवर्तित होती रहती हैं ।
और इन सब के साथ पुरूष
परिवर्तित कर लेता है , अपना
प्रेम एक नयी देह की लालशा में ।
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