Sakshi Shukla   (Sakshi shukla)
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Instagram id sakshishukla1457
Joined 22 May 2020


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Joined 22 May 2020
20 SEP 2020 AT 22:52

मैंने अपने जिस्म से सौदा किया,
पर कभी खुद की पेट भरने के लिए ,
तो कभी किसी अपने के द्वारा बेचे जाने पर।
क्या मेरा हक़ नहीं घर बसाने का?
अपना जीवन संवारने का ?
तुम मुझे क्या दिन में राह चलते गाली
देते हो। मै तुम्हे धिकारती हूं।
चलो माना मेरा यही अस्तित्व है,
पर तुम्हारा तो वो भी नहीं है।
खुद को शरीफ और इज्ज़तदार
पुरुष बोलते हो !
तुम्हारा अस्तित्व रात के अंधेरों
में गलियों के बीच पता चलता है।
तवायफ बुलाते हो मुझे,
मैंने यहां किसी का किरदार
ईमानदार नहीं देखा।
फिर तवायफ को ही सब
क्यों बदनाम करते है।

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16 AUG 2020 AT 22:59

घड़ी वक़्त बताती हैं,
और वक़्त लोगों की पहचान।

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15 JUL 2020 AT 23:01

हाँ मैं स्त्री हूँ।
मैं रिश्तों के कुरूक्षेत्र में अपने आपसे लड़ती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
कभी हमारे मन की गाँठ को खोल कर पढ़ो।
मैं तुम्हारे साथ जी उठती हूँ, महक उठती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
माना कभी आपके साथ नहीं रहती पर
हर लम्हा आपका साया बन रहती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
मैं अपने जीवन के सपने आपके साथ देखती हूँ
और उसे प्यार से खुशियो से सजो लेती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
खुद कि तकलीफ खुद ही सह लेती हूँ।
अपने सपनो को दूसरे की ख़ुशी के लिए तोड़ देती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
कभी-कभी जब बहुत दु:खी होती हूँ,
और खुश होती हूँ तो जी भर के रो लेती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।

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29 SEP 2020 AT 23:27

हां मैं मानती हूं कि इस
वक्त तुम सिर्फ मेरे हों,
लेकिन बात ये है कि
कब तक रहोगे।
अगर हमारे बीच में कल
कोई विपत्ति आ जाए,
तो क्या तुम मेरा
साथ छोड़ दोगे।
बीच मझदार में मुझे
अकेला छोड़ दोगे।
मान लो अगर किसी
बात से जुदा हो जाएंगे,
तो क्या तब भी तुम
सिर्फ मेरे रहोगे ?

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28 SEP 2020 AT 23:04

तुम्हारे लिए मुझे कुछ लिख
पाना थोड़ा मुश्किल है,
मेरी तरह मेरे लफ्ज़ भी हार जाते है।

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27 SEP 2020 AT 20:04

अक्सर पुरुष की आंखे आकर रुक जाती हैं
स्त्रियों की वक्षों पर , नाभी के गाहराई पर ,
उनके होठों पर । दूर से ही वह देह की
छुपी तृष्णा को तलाश रहा है ।
एक देह !
और जब सामने मिल गया , तो
वह नेत्रों की ही तृप्ति से तृप्त हो रहा है ।
और यही हो जाता है देह प्रेम ।
पुरुष प्रेम में नहीं देह में स्थित है ।
ज्यादातर स्त्रियां मान लेती है
ईश्वरीय प्रेम । वो ये नहीं जान पाती
कि देह आकृति समय के साथ
परिवर्तित होती रहती हैं ।
और इन सब के साथ पुरूष
परिवर्तित कर लेता है , अपना
प्रेम एक नयी देह की लालशा में ।

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26 SEP 2020 AT 16:56

कम उम्र में भी तुमसे इश्क़
बेहिसाब हो गया।
उम्र बढ़ती गयी और
ये रोग लाइलाज हो गया।
और जब ये रोग हुआ तो
ना दिन को चैन, ना रातों
को नींद पर कुछ भी कहो
रोग लाज़वाब हो गया।

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14 SEP 2020 AT 10:22

माँ अभी तो मैं आपके गर्भ में आयी हूँ।
तब से आपने मुझे मारने का सोच लिया माँ?
माँ आप मेरे साथ ऐसा ना करो।
मैं आपकी और पापा कि तो परी हूँ, ना मैं?
फिर क्यों आप लोग नही चाह
रहे कि मैं जन्म लु?
माँ सब साथ छोड़ दे मेरा पर
आप तो ना छोडो़।
कुछ तो कोशिश करो मुझे
बचाने की।

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7 SEP 2020 AT 22:05

कि कही कोई मासूम सी कली
को पेड़ से तोड़ कर अलग ना कर दे।
जो अभी अध खिला है जिसको
माली बहुत ही प्यार से सम्भाल
कर सजो कर रखा हैं।
कि जब फूल बन जायेगा तो
हर जगह खुशबू फैलायेगा।

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4 SEP 2020 AT 20:12

ज़िंदगी का सफ़र भले ही लम्बा
हो कठिनाइयों से भरा हो,
पर तुम यू ही हर कदम पर मेरा
साथ देते रहना।

और कभी साथ छोड़कर जाने की
कोशिश भी मत करना।
क्योंकि तुम्हारे प्यार और साथ के बिना
ज़िंदगी का सफ़र मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।

हम ऐसे ही लड़ते, झगड़ते, एक साथ रहते
ज़िंदगी की सारी कठिनाइयों का साथ में
डट के सामना करेंगे।

पर तब ये हो पायेगा जब हम एक साथ होंगे।
ज़िंदगी का सफ़र यू तो इतना मुश्किल नहीं
पर बिना हमसफ़र के जीवन का कोई अस्तित्व ही हैं।

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