एक आह्वान ,
गुंजा शंखनाद ...
एकजुटता का ...
बना परिचायक !!-
Na gairon ki hon nigahen
Na apno ka bandobast
Na marne ka khauf ho
Na jeene ki kashmakash-
//शंखनाद-शत्रु परिचय//
कैसा हुआ शंखनाद
रण है पर शत्रु नहीं
ललकार पर शस्त्र नहीं
पूर्णिमा पर चांद नहीं
ढूंढ रहीं थीं निगाहें
फिर घातक एक प्रहार हुआ
कोई नहीं फिर भी समक्ष
रण शत्रु बिन रुका हैं
आघात निरन्तर हो रहे
नेत्र अब भी बेरी को ढूंढ रहे
अब तक ऐसा ना शत्रु मिला
यह शत्रु एक अदृश्य हुआ
मस्तिष्क अब एक सोच में है
शत्रु प्रहार प्रखर मुझ सा करता है
हर वार मेरी युद्ध शैली सा करता है
क्या अपना ही मुझसे कोई लड़ता है...
जो मेरे संग शत्रु विरुद्ध कभी लड़ता था
मेरे तन में जो कभी बस्ता था
आज मेरे विरुद्ध खड़ा ही होता है
साया मेरा आज मुझसे ही लड़ता है-
मैंने अपने इश्क़ के इजहार का शंखनाद बजा दिया,
मैंने अब तुम्हें अपने जीवन का आधार बना लिया ।-
सरहदों पे बार बार, जो अब विवाद होगा ।
शान्ति के पुजारियों का, शंखनाद होगा ।।-
//शंखनाद ?//
स्वागत फिर शंखनाद में करता हूँ
विलक्षित युद्ध का कारण व्यक्त करता हूँ
सोच सको उतनी समझ की बाते हैं
तत्पश्चात बाते अनर्गल कहलाती हैं।
जीत सको समस्त भूमि को, मान लिया समर्थता तुझमे है
रोक सके तेरा मार्ग कोई, कोई नहीं ऐसा समर्थ जग में
तू खुद कोई अपवाद मात्र हैं, अंतिम तेरा तू शत्रु मात्र हैं
चुनाव अब तुमको करना होगा, स्वयं विरुद्ध शंखनाद करना होगा
मिलते नहीं गुरु द्रोण सभी को, एकलव्य सा तप करना होगा
कहलाते है क्षत्रिय बड़े ही, कहते जग का हम उद्धार कर रहे
बुराई अभी बाकी ना होती, जो खुद से ही लड़ जाते हम
जल रहीं चिताए संताप कर रहे, देखो कहिं कब्र हम किसी की खोद रहे
कठिन हो पर अपना मार्ग चुनता हूँ, लिखित य़ह प्रमाण देता हूँ
हार मान बेठा जो कभी तो, मृत्यु श्रेष्ठ प्रमाण यहि हैं
फिर भला वो दीपक भी क्या बुझता होगा, जो सूरज सा तपता होगा
फिर आगाज युद्ध का करता हूँ मैं, स्वयं विरुद्ध शंखनाद करता हूँ मैं-