वो मशहूर Tha बहुत
और उसे अपनी मशहूरी पर गुमान Tha...
Main मजबूर था बहुत
और मैं अपनी मजबूरी से परेशान Tha...
वो चाहता Tha
कि मैं उसकी जी-हजूरी करूं Janab...
पर जी-हजूरी के Naam पर
हमारे लहू में बारूद और आंखों में श्मशान Tha...-
क्या हुआ जो बसेरे यूं उजरवाए गए
क्या हुआ जो प्यार यूं मिटाए गए
क्या हुआ जो दर्द यूं छिपाए गए
क्या हुआ जो समशान सिर्फ तुम बुलाए गए-
जिंदगी में कितने ही बड़े शौक पालो लेकिन
श्मशान में जगह उतनी मिलेगी जितनी दूसरों को ....-
तुम बताओ तुम कैसे हो गए ?
हम तो न जिस्म न जान हो गए,
जैसे खाली जहान हो गए,
जिसमें रोज कुछ यादों की चिताएं जला करती हैं,
ऐसे श्मशान हो गए,-
राजा हो या फकीर
सब को यहीं पर आना है
फिर भी अहंकार, द्वेष से भरे है
अंत में सबको मौत से गले लगाना हैं-
पानी पिघल कर क्या बनेगा,
जिस्म जल कर क्या बनेगा।
रूह के सौदे से कुछ ना बना,
बदन बदल कर क्या बनेगा।
खाक ही तो है सब कुछ,
श्मशान चल कर क्या बनेगा।
मौत से मिली मोहलत है ज़िन्दगी,
होश संभल कर क्या बनेगा।-
खो गई हूं तेरे लिए इस भीड़ में
अब तू मेरी पहचान ना कर
मुझसे मिल पाएगा तू फिर से
तौबा...ऐसे अरमान ना कर
लिपटी हुई हूं कफ़न से मै
अब तू दुनिया शमशान ना कर
चल तेरे साथ चलूंगा हमेशा
बस अब ये मजाक हर बार ना कर
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हमेशा जलता हुआ दीया
अंधकार को दूर करता है l
लेकिन श्मशान में जलती हुई
चिता किसी के घर की
रोशनी छीन लेती है ll
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