अंतः अस्ति प्रारंभः   (#♥️✍️पु s पे n द् ✍️♥#)
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Bio Under Process...📍
Joined 13 October 2019


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फलाना की "चा❤️य" में घुली फलानी की हँसी जब शाम ने देखी,
तो जाम-ए-मोहब्बत से भी रश्क़ करने लगी तन्हा तितली...

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कभी सूरज से पहले उठता है,
कभी चाँद से देर तलक जगता है,
वो हाथ जिनमें छाले हैं,
हक़ीक़त में वही सजते हैं।

ना अफ़सानों में ज़िक्र उसका,
ना तस्वीरों में चेहरा है,
मगर ईंटों पे जो रंग चढ़ा है,
वो उसी के खून का सहरा है।

कभी दीवार बनाता है,
कभी छाँव उगाता है,
फिर उसी पे कोई हुक्म चलाता है,
जो उसकी मेहनत से राजमहल पाता है।

कपड़े मैले, मगर दिल पाक,
सपनों का उसके अलग ही स्वाद,
वो हर थकान में भी गाता है,
"कल फिर से काम पे जाना है…"

ना शोर मचाता, ना मांगता हक़,
बस वक़्त पे चलता जाता है,
वो मज़दूर है, वो मेहनतकश है,
जो वजूद को अपने घिसता है...

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A – आहटों में भी अज़्म छुपा है,
B – बेबसी में भी बाज़ुओं का यक़ीं जुड़ा है।
C – चरखा भी चले, छेनी भी बजे,
D – दर्द से भी दीवारें सजें।

E – ईंट दर ईंट इमारतें गढ़ीं,
F – फटी जेबों में भी फलक की लकीरें पढ़ीं।
G – गर्मी, ग़म, ग़ुरबत का ग़ुलाम नहीं,
H – हौसले का हर मज़दूर इनाम सही।

I – इंक़लाब की इब्तिदा भी वो हैं,
J – जंग भी, जज़्बा भी, जुस्तजू भी वो हैं।
K – कंधों पर कर्ब का बोझ सही,
L – लेकिन लहू में लम्हों की रौशनी सही।

M – मिट्टी से मंदिर, मस्जिद, मकान बना,
N – नींव से नभ तक नाम बना।
O – ओस की तरह सुबहें चुनते हैं,
P – पसीने से पत्थर भी पिघलते हैं।

Q – क़दमों में क़ुर्बानी का रंग है,
R – रात-दिन एक, फिर भी संग है।
S – साँसों में साज़िशों का शोर नहीं,
T – ताज बना देते हैं, मगर तख़्त का ज़ोर नहीं।

U – उजालों से उजाले नहीं माँगे,
V – वक़्त को भी हथेलियों से बाँधे।
W – वक़ार से वजूद की बुनियाद रखी,
X – X-ray से भी ना दिखे इतनी सच्चाई कहीं।

Y – यक़ीन की ये तस्वीरें हैं,
Z – ज़माने की हर ज़ंजीरें हैं तोड़ देने वाले...
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"चा❤️य" की तपिश में जब तेरा 🫵 एहसास होता है,
तब हर मौसम कुछ और ही ख़ास होता है...

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चलो ये शाम भी गुज़री, कुछ उदासियों के साथ,
बुझी न दिल की तन्हाई, मगर बुझा है इक ख़्याल।

फिर एक चुप ने दरवाज़े पे दस्तक दी बहुत धीरे,
हम खोल बैठे यादों का वो बंद और स्याह हाल।

सूरज गया तो छाया एक नक़्श-ए-आरज़ू सा,
कि जैसे कोई रूठा पल, लिख गया हो इक सवाल।

खिड़की से आती ठंडी हवा, पूछे कोई फ़साना,
हम मुस्कुरा के कह दें: "था कल, आज है बस जाल।"

चलो ये शाम भी गुज़री, कुछ धुँधली सी तस्वीर में,
न तुम रहे, न हम मगर, बचा है इक ख़ामोश कमाल...

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मैं, तुम और वो समंदर की धीमी सिसकियाँ,
जहाँ silence भी कुछ कहती थी, और हवा भी सुनती थी।
You looked at the horizon, जैसे कोई सपना तैर रहा हो,
और मैं तुम्हारी परछाईं में अपने ख़याल ढूँढता रहा।

लहरें आती रहीं, जाती रहीं
Just like the things we never said,
पर उस पल में time भी रुक सा गया था,
जैसे खुदा ने लिखा हो pause for us to feel.

तुम्हारे बालों में उलझी थी शाम की हवा,
और मेरी आँखों में तुम्हारी बातों की परतें।
It wasn’t just a walk by the beach,
It was a walk through our souls quietly, deeply.

हमने कुछ नहीं माँगा उस पल से,
ना वादा, ना future का कोई नक़्शा।
बस दिल ने इतना कहा softly
"Let this be forever, even if it lasts just tonight...

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हुए तुम ग़ैर, मगर यूँ नहीं कि बस छूट गए,
तुम तो उस रूह से फिसले हो, जो मेरी जान थी।

जैसे कोई अपना नाम भूल जाए आईने में,
वैसे ही तुम मेरी आँखों से ओझल हुए हो।

तुम्हारे बाद, हर अक्स, हर आहट, हर लम्हा बस,
एक गुमशुदा सफ़्हा है किताब-ए-हयात का।

तुम गए नहीं, तुमने मेरा वजूद उतार कर रख दिया है,
किसी वीरान कोने में मैं अब भी वहीं हूँ।

जहाँ तुमने छोड़ा नहीं, जहाँ तुमने मुझे ख़ुद से जुदा किया,
हुए तुम ग़ैर पर इस ग़ैरत में कोई पराया नहीं कोई और नहीं।

बस तुम थे, और तुम्हारा ‘मैं नहीं’ होना था,
तुम ग़ैर नहीं हुए, तुम खुदा से उतर कर, इंसान भी न रहे...

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हर शय में घुला इक ताजगी का इशारा है,
बादल की चुपी में भी कोई राज़ हमारा है।

ठंडी हवा छू जाए तो दिल कहे दोबारा खुशबू,
से भी भीगा हुआ ये मौसम का नज़ारा है।

धूप भी नर्म है, छाँव भी कुछ प्यारा-प्यारा,
हर रंग में छुपा हुआ इश्क़ का इक ग़ुबारा है।

बारिश की बूँदों ने जब से ज़मीं को छुआ,
हर पत्ता, हर फूल लगे इक नया सितारा है...

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इक तेरा ज़िक्र हो, तो लफ़्ज़ भी वज़ू करते हैं,
हर हरफ़ से पहले दिल तेरा नाम पढ़ता है।
तू मिले या ना मिले, ये तो तक़दीर की बात है,
मगर तुझे चाहना, मेरी इबादत की सलीब है।

मैंने खुदा से कुछ नहीं माँगा तेरे बाद,
अब बस तुझमें ही रब का नूर दिखता है।
तेरी ख़ुशबू मेरी रगों में दौड़ती है जैसे,
हर सांस तेरा ज़िक्र करे, हर धड़कन सजदा।

ना कोई मूरत, ना कोई सूरत चाहिए मुझे,
तेरी यादों की तन्हा सी रात ही मेरा हरम है।
तू नज़र आए ना आए, तेरा एहसास बहुत है,
मेरी तन्हाई की दुनिया में तू एक रौशनी की तरह है।

मैंने हर साँस को तेरी याद में ढाल लिया अब,
दुआओं का नहीं, तेरा नाम "इबादत" बना लिया।
काबा-ओ-कलीसा से दिल हट गया जब से तेरे,
सजदे में झुकता हूँ, यही मेरा मकाम यही मेरा रस्ता है।

तेरे होंठों की ख़ामोशी भी अज़ान लगती है,
और तेरी पलकों की हर हरकत में सज़दा है।
ना वज़ू किया, ना नमाज़ पड़ी बस तुझे,
सोचा और इबादत मुकम्मल हो गई...

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उस रात, जब तू आया न कोई शोर था,
न उजाला सिर्फ़ मेरी सांसें थीं और एक।
अजीब सी तपिश तेरे रोने की आवाज़ नहीं,
मुझे मेरे अंदर से किसी ने पुकारा था।

मैंने तुझे देखा नहीं था अभी,
पर तुझे ओढ़ लिया था।
जैसे कोई सदीयों की अधूरी दुआ।
मुझे मुकम्मल कर गई हो।

तेरे माथे की नमी मेरे सीने की,
धड़कनों से लिपटी थी तेरे होंठ।
नहीं हिले थे पर तेरी रूह,
मुझे "माँ" कह चुकी थी।

मैंने तुझे दूध नहीं अपना,
वजूद पिलाया तू मेरा बच्चा।
नहीं तू मेरी रूह का,
ताज था उस रात...

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