हर जज़्बे में तेरी ही तलब देखी मैंने,
पसंदीदा खोज का अजब रंग पाया मैंने।
सवालों की भीड़ में जब खो गया था मैं,
तेरी मुस्कान में जवाब पाया मैंने।
राहें अनजान थीं, मंज़िल धुंधली सी लगी,
तेरे नक्शे-ए-कदम से सफ़र सजाया मैंने।
ये दिल किताब सा था अधूरा और खाली,
तेरे नाम का पन्ना लगाकर सजाया मैंने।
जहाँ रूह की प्यास को कुछ न मिला था,
तेरी आँखों के समंदर से बुझाया मैंने।
हर तलाश का मंज़र तेरी ओर आया,
पसंदीदा खोज में तुझे ही पाया मैंने...
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मेरे हर फ़ैसले की राह है महबूब की पसंद,
ज़िंदगी की दास्ताँ है महबूब की पसंद।
गुलों की महफ़िलों में रंग भर देता हूँ मैं,
चुनता हूँ सिर्फ़ वो जो है महबूब की पसंद।
मेरा किरदार, मेरी पहचान सब कुछ बदल गया,
जब से दिल की दुनिया बनी महबूब की पसंद।
आईने में भी अब ख़ुद को वही देखता हूँ,
जिस अंदाज़ से सजती रही महबूब की पसंद।
रातों की तन्हाई में जब ख़्वाब सजते हैं,
उनमें चाँद-सा चमकता है महबूब की पसंद।
मेरे अल्फ़ाज़ भी अब गुल बनकर खिल उठे,
जब से शेरों में ढली है महबूब की पसंद।
ताजमहल से भी गहरी है उसकी अहमियत,
जो है मेरी रूह की जमीं महबूब की पसंद।
मैंने अब मोहब्बत का यही तर्ज़ है जानाँ की,
दुनिया की हर ख़ुशी से बढ़ी महबूब की पसंद...-
किताबों का संसार है जादू भरा जहाँ,
हर पन्ना है रौशन, हर लफ़्ज़ है आसमाँ।
स्याही से बनी रूह की तस्वीरें यहाँ,
माजरा-ए-दिल सुनाती हैं तक़दीरें यहाँ।
हर सफ़्हा गवाही है किसी बीते आलम की,
हर लफ़्ज़ में महक है मोहब्बत के मरहम की।
ख़ामोशियाँ भी बोल उठती हैं इन पन्नों में,
छुपे हैं किस्से अनकहे हज़ारों सपनों में।
कभी आईना, कभी साया, कभी हमराज़ लगे,
किताबों का संसार हर दर्द को आवाज़ लगे।
ये सिर्फ़ अक्षर नहीं, ये रूह का दरबार हैं,
दिल से पढ़ो तो खुदा तक ले जाने वाले राह हैं...-
तेरी हँसी और "चा❤️य" की खुशबू जब पास हों,
तो बस फ़िर वक़्त का हर लम्हा मेरे लिए ख़ास हो...
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सितारों के नीचे ख्वाबों की रौशनी बोल उठी,
तन्हा दिल की धड़कन भी चुपके से खोल उठी।
हर चमक में छुपा है कोई रहस्यमयी फ़साना,
सितारों के नीचे किसे कौन समझा पाए दीवाना।
रात की चादर में जड़े अनगिनत हीरे चमकते हैं,
सितारों के नीचे मोहब्बत के नग़्मे धड़कते हैं।
तेरी यादों का सफ़र भी वहीं से शुरू होता है,
सितारों के नीचे दिल को सुकून क्यों मिलता है।
हवा की सरगोशियों में दुआएँ मिल जाती हैं,
सितारों के नीचे रूहें अक्सर खिल जाती हैं।
जब चाँद ओझल हो तो भी जादू नहीं घटता,
सितारों के नीचे इश्क़ का आलम यूँ ही सज़ता...
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पेंसिल की नोक पर ठहरी ख़ामोश दुआ,
जैसे काग़ज़ पर उतरती हो रौशनी की रिदा।
सपनों के रंगों से सजी है हर पंक्ति जैसे,
बादलों के आँचल में छुपी हो बरसात गहरी।
कबूतर के पंखों पर लिपटी है कोई आवाज़,
जिसे हवाएँ भी सुनकर कर देती हैं इकरार।
हर परवाज़ में छुपा है इक ग़ैर-लिखा पैग़ाम,
दिलों की ज़ुबान, जिसे पढ़ न पाए कोई कलाम।
उम्मीद का तरंग दिल से टकराता रहे,
ये सफ़र ख़्वाबों का मुस्कुराता रहे...-
साया सा चेहरा है, मगर आँखों में उजाला,
ख़्वाबों की गलियों में कोई चुप सा हवाला।
हाथों की लकीरों ने बहुत कुछ है कहा भी,
किस्मत के सफ़र में है मोहब्बत का इशारा।
मिट्टी की मूरत है, मगर रूह में समंदर,
हर रेशे में जैसे कोई ख़्वाहिश हो उतारा।
दर्पण में नज़र आती है बेचैन कहानी,
आँखों से उतरती है दिलों तक वो दुबारा।
रहस्यों की चादर में छुपा चेहरा वही है,
जिसको न कभी देखा, न पाया दोबारा।
सपनों की रवानी ने किया जिसको मुकम्मल,
वो नाम ही शायद मेरी तहरीर का सहारा...-
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर ठोकरें मिलें तो मिलें,
मगर अपने सिर का ताज कभी झुके न, यही दुआ रहे।
नफ़रत की आंधियों में भी अपने वजूद की मशाल थामे रखना,
क्योंकि अंधेरों में रौशनी वही जलाता है, जो ख़ुद को पहचानता है।
आत्मसम्मान की रक्षा केवल शब्दों की शपथ नहीं है,
ये तो रूह का तहफ़्फ़ुज़ है, दिल की असली जीत है।
कभी समझौता करो तो अपने दिल की खुशी से करो,
मगर ज़हर पीकर भी मुस्कुराना, ये गुलामी है मोहब्बत नहीं।
लोग क्या कहेंगे, ये सोचकर झुकोगे तो टूट जाओगे,
ख़ुद पर भरोसा रखो, तब ही वक़्त भी सलाम करेगा।
आत्मसम्मान की रक्षा करना आसान नहीं होता है,
मगर यही इंसान की सबसे बड़ी शानोशौकत होता है...
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दो दिलों की आपसी मिलन जब रूह को छू जाए,
तो इश्क़ की ज़ुबान ख़ुद-ब-ख़ुद नग़मे गुनगुनाए।
साँसों की सरग़ोशियाँ भी हो जाती हैं तर्जुमा,
जब दिलों की धड़कनों का पैग़ाम सामने आए।
ये मिलन कोई साधारण नहीं, रब का करम है,
जो परछाइयाँ भी एक-दूसरे से गले लग जाए।
राहें चाहे हज़ार हों, मंज़िल तो वही ठहरती,
जहाँ दिलों का इकरार इक सूरज-सा जगमगाए।
मोहब्बत की तफ़सीर किताबों में कहाँ मिलती,
दो दिलों का मिलन ही सब राज़ समझाए।
वो मिलन ऐसा है जैसे चाँदनी गले लगे सागर से,
हर लहर में उसका ही अक्स नज़र आए...-
ये ज़िन्दगी हम इक दूजे के संग खिलखिला उठेंगी,
अंधेरों की गिरहें टूटेंगी, राहें भी जगमगा उठेंगी।
जो ठहरे थे दर्द की क़ैद में सदियों से खामोश लम्हे,
हमारी धड़कनों के संग चलकर धुन बना उठेंगी।
सफ़र के हर मोड़ पर जब थकान दस्तक देगी,
मोहब्बत की छाँव में साँसें फिर ताज़ा उठेंगी।
ग़मों की बारिश में भीगकर जब रूह काँप जाएगी,
तेरे होंठों की हँसी से उम्मीदें खिलखिला उठेंगी।
न सवाल होंगे न कोई जवाब ढूँढेगा,
निगाहों की तफ़्सीर से दास्ताँ खुला उठेंगी।
फ़ना की वादी में भी जब आख़िरकार मिलेंगे,
ये ज़िन्दगी हम इक दूजे के संग खिलखिला उठेंगी...-