कभी वो धूप की तरह जलाया करते थे,
अब बर्फ़ बनकर पिघल भी नहीं पाते।
रिश्ते जो मौसम थे, गुज़र गए ऐसे,
अब सिर्फ़ यादों में बादल बरसाते हैं...
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चले थे साथ पर साया कभी मेरा न हुआ,
तेरे नक़्शों में ही उलझा हर एक रास्ता हुआ।
मैं ढूँढ़ता रहा दीवार पर उजली किरन,
मेरे हिस्से की धूप बस तुझमें गुमशुदा हुआ।
तेरे आँगन में चमकते रहे मौसम हरदम,
मगर मेरा ही लम्हा हरपल बेवफ़ा हुआ।
मैंने राख की चादर में बचाई थी कुछ रौशनी,
वो भी बादल के आँचल से जाने कब बहा हुआ।
जिन ख्वाबों में तू आया था सहर बनकर,
अब वहीं नींद का रिश्ता भी मुझसे खफा हुआ।
बड़ी मेहनत से जोड़ी थी रौशनियों की लकीरें,
तेरे एक “नहीं” से सब कुछ धुंधला हुआ...
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लोग कहते हैं की “क्या ख़ूब लिखते हो यार”,
कोई ये नहीं पूछता की “इतना दर्द लाते कहां से हो...?”
हमने रग-रग से निचोड़ा है हर मिसरा तब,
कहीं जाके महफ़िल में माहौल जमती है...
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तेरे इश्क़ ने मुझसे मेरी साँसें छीन लीं, मैं ज़िंदा हूँ पर हर हँसी से दुश्मनी सी हो गई।
अब खुद से ही गुफ़्तगू नहीं होती, क्योंकि रूह मेरी तेरे पास गिरवी हो गई...
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तेरे आने की आस लिए, इक सूनी सी रात जली है,
हर शब दिल ने दुआ माँगी, हर पल इक बात चली।
छत पर चाँद उतरता है, तन्हा तन्हा चुप बैठा है,
मेरे होंठों पर नाम तेरा, आँखों में बरसात लिए है।
हर साया तेरा हमसाया, हर कोना तेरा नक़्शा है,
इस वीराने में तू बसा है, जैसे कोई ज़ात छली है।
मैं नज़्मों की राख बना हूँ, तू जुगनू की आख़िरी चमक है,
तेरे लफ़्ज़ों की लौ थमी, और मेरी साँसें भी साथ ढली है।
तेरी आहट की ख़ुशबू में, अब भी साँसे भीग रही है,
रूह ने ओढ़ लिया तुझको, तन अब भी ख़ाली-ख़ली है।
तू आए न आए, लेकिन, इक वादा तो अब भी है,
इस "इंतज़ार" की सज़ा में, मोहब्बत हर बार चली है।
हर पल इक सदियों जैसा, हर धड़कन इक कारावास है,
तेरे बिन आए भी जीता हूँ, तेरे आने की आस बाकी है।
"Mr. King" ने दिल की दराज़ों में, इक ख़्वाब सजाया है,
जो अबकी टूटा तो बिखर जाऊँगा, अब न कोई साँस नई है...
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भीगी ज़ुल्फ़ों में सिमटी रही रात सारी,
फलाना देखता रहा, फलानी की खुमारी...
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तुम्हारा इंतज़ार करते करते,
ख़ुद को ही ख़त्म कर, गए हम तो।
हर आहट में तेरा ही अश्क देखा,
धुंध में ख़्वाब भर, गए हम तो।
न चाँद आया, न कोई पैग़ाम तेरा,
लेकिन सितारों से डर, गए हम तो।
वो मौसम, वो रंग, वो भीगी सी शाम,
हर दफ़ा तेरी यादों में खो, गए हम तो।
तेरे वादों की छाँव में बैठे रहे,
ख़ामोशी से डर, गए हम तो।
न साँसों में ताजगी बची कोई,
तेरे बिन बिखर, गए हम तो।
"Mr. King" की तन्हाई से पूछो ज़रा,
की ये इश्क़ में क्या कर, गए हम तो...
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कुछ मेरी ख़बर लो, अब सिसकियों में लिपटा हुआ हूँ,
मैं नींद से गिरा हूँ, लेकिन अब किसी ख़्वाब में छिपा हूँ।
तेरे बिना अब ये रातें भी राख़ सी होने लगी हैं,
अब हर सुबह की चादर में अंधेरों से लिपटा हूँ।
अब लब ख़ामोश हैं मेरे, मगर रूह चीख़ती है,
जो कह नहीं सका था, उसी ज़ख़्म को जिया हूँ।
तू पूछ भी न कर सका, मैं टूटता कैसे-कैसे हूँ,
अब मैं आइनों से उलझा, मैं अश्क़ में भीगा हूँ।
अब मुझे ख़बर है तुझको नहीं है मेरी ज़रूरत,
मगर ये क्या करूँ कि तुझे सोचकर जिया हूँ।
वो नाम जो कभी तूने लबों से पुकारा था,
उसी को अब तलक मैं दुआओं में लिखता हूँ।
हवा भी अब अजनबी सी दस्तकें देती है,
मैं तेरे शहर से निकला, मगर तुझमें ही बसा हूँ।
"Mr. King" की जुबाँ अब भी तेरा नाम पुकारे,
मैं ख़ुद को छोड़ आया हूँ, जहाँ तू था वहीं हूँ...
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सूरज की किरणें चीरती हैं अंधेरों का पर्दा पुल की,
लकड़ी चरमराती है, बयान करती वक्त का बोझ।
दोनों ओर खामोशी, एक अनकही कहानी लिए,
हृदय में दबी चीखें, जो कभी न सुनाई दें सके।
हर कदम एक सवाल, हर छोर एक जवाब है,
फिर भी अनसुलझा रहता है जीवन का रंग।
संध्या की आग में जलती है आशा की लौ,
मगर राख में मिल जाती है हर उम्मीद की डोर।
दूर तक जाता है यह रास्ता, पर ठहरता कहाँ...?
आत्मा की गहराई में खोया एक अज्ञात तूफान।
सूरज डूबे तो उग आएगा, मगर यह पुल,
रहेगा खड़ा, साक्षी बनेगा हर दर्द का मिलन...-
ना शिकवे, ना शिकायतें बस "चा❤️य" हो तेरे साथ,
कुछ देर को ही सही, पर ज़िंदगी सी लगती है...
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