कुछ सर्द-सर्द सा मौसम हैं आज...
आज ही कुछ ख्वाहिशों को आग लगा देते हैं।
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Sard mei har jagah kohra sa hai chaya
Jab ye kohra hta to us ham-nafs ka chehra samne nazar aya.....!-
एक बार मैं तुझमें से निकलकर, खुद में रहना चाहता हूँ,
बहुत तपिश दी थी तेरी रूह ने, अब मैं ठिठुरना चाहता हूँ..!
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मौसम ज़रा सा सर्द क्या हुआ ,
तेरी यादें ओढ़ने लगी है कम्बल की तरह....!!-
काश दिसंबर में मोहब्बत लग जाए;
तुम्हे सर्द की तरह,
तुम सिसक कर मांगो हमें;
चाय की जगह !!-
मौसम को तो देखो,
फितरत इसकी भी तुम जैसी हो गयी है,
ऋतु बसंत है और फुहार मनचली है,
रुख जो ये इस मौसम ने पलटा है,
लगता है हवाओं ने भी साजिश की है,
कहीं बसंत से प्रेम न करलूँ इसलिए
सर्द बयार अब फिरसे हो चली है।-
बड़ी ही गुमसुम सी है ये सर्द रातों की तनहाई भी
यूँ लगता है जिंदगी ने इसे भी कई इलजाम दिए है।-
कुछ "इश्क़" सा दहक रहा हैं मेरे अंदर कहीं,
ये दिसम्बर का महीना लगता हैं अब सर्द ना रहा।-