Savita Karna   (सविता कर्ण)
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Joined 24 May 2018


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15 HOURS AGO

कविता अनुशीर्षक में पढ़े

पहली चाहत

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4 OCT AT 16:26

कविता अनुशीर्षक में पढ़े

स्त्री

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3 OCT AT 17:37

ऊसूलों पर चलना कहाँ आसान होता है
उनकी जग हसाई तो सरेआम होता है
माना कि सत्य की राहों में काटें है बहुत
मगर अपने जमीर को जिन्दा रखना
भी नहीं आम होता है।


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2 OCT AT 12:17

आज रावण दहन के साथ -साथ अपने अंदर के रावण को ईष्या, द्वेष, घमंड, छल, कपट, गुस्सा,घृणा, नफ़रत, को भी जलायें और इंसानियत को बढ़ाये।
विजया -दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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28 SEP AT 20:53

कविता अनुशीर्षक में पढ़े
बगावत

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26 SEP AT 21:58

कविता अनूशीर्षक में पढ़े

जमाना

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25 SEP AT 20:37

चुपके से ये जिंदगी भी
अपनी राज खोलती है
मुठठी में कैद ये वक्त भी
रेत की तरह फिसलती है
कोशिश कितने भी करतीं हूँ
खूद को थामने कि मगर
ये सपने भी तो मेरे ऐसे है जिन्हें
मैं आंखों से नहीं दिल से देखती हूँ।

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20 SEP AT 14:42

कविता अनुशिर्षक में पढे़



मैं

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18 SEP AT 19:12

पर कतरने को तो जमाना सामने खड़ा है
ये दिल भी है जो जिद्द पर अड़ा है
लाख आंधियां आए राहों में मेरे
उड़ने को तो सारा आसमान पड़ा है।

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14 SEP AT 11:37

हिन्दी और माँ दोनों में
मुझे समानता लगती है ।
दोनों की भाषा प्यारी -प्यारी
दोनों लगती मुझे सबसे न्यारी
दिलों को ये जोड़ती है
अपने शब्दों से जीवन में
मिठास घोलती है ।
यह भाषा है गंगा की अविरल धारा
सत्य अहिंसा का ये सहारा।
हिन्दी है मेरी आत्मा की आवाज़
भारत माँ की प्यारी साज।
आओ मिलकर ये संकल्प उठाएं
हिन्दी का हम मान बढायें।
विश्व पटल पर गुंजे ये तान
हिन्दी रहे हमारी पहचान
हिन्दी है संस्कृति की जान
हिन्दी से है भारत महान।


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