कविता अनुशीर्षक में पढ़े
पहली चाहत-
मैं कोई कवि या शायर नहीं
मैं तो बस अपने दिल की सकुन के लिए
लिखती हू... read more
ऊसूलों पर चलना कहाँ आसान होता है
उनकी जग हसाई तो सरेआम होता है
माना कि सत्य की राहों में काटें है बहुत
मगर अपने जमीर को जिन्दा रखना
भी नहीं आम होता है।
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आज रावण दहन के साथ -साथ अपने अंदर के रावण को ईष्या, द्वेष, घमंड, छल, कपट, गुस्सा,घृणा, नफ़रत, को भी जलायें और इंसानियत को बढ़ाये।
विजया -दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।-
चुपके से ये जिंदगी भी
अपनी राज खोलती है
मुठठी में कैद ये वक्त भी
रेत की तरह फिसलती है
कोशिश कितने भी करतीं हूँ
खूद को थामने कि मगर
ये सपने भी तो मेरे ऐसे है जिन्हें
मैं आंखों से नहीं दिल से देखती हूँ।
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पर कतरने को तो जमाना सामने खड़ा है
ये दिल भी है जो जिद्द पर अड़ा है
लाख आंधियां आए राहों में मेरे
उड़ने को तो सारा आसमान पड़ा है।-
हिन्दी और माँ दोनों में
मुझे समानता लगती है ।
दोनों की भाषा प्यारी -प्यारी
दोनों लगती मुझे सबसे न्यारी
दिलों को ये जोड़ती है
अपने शब्दों से जीवन में
मिठास घोलती है ।
यह भाषा है गंगा की अविरल धारा
सत्य अहिंसा का ये सहारा।
हिन्दी है मेरी आत्मा की आवाज़
भारत माँ की प्यारी साज।
आओ मिलकर ये संकल्प उठाएं
हिन्दी का हम मान बढायें।
विश्व पटल पर गुंजे ये तान
हिन्दी रहे हमारी पहचान
हिन्दी है संस्कृति की जान
हिन्दी से है भारत महान।
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