कभी खुशहाल, कभी उदास होगी...
कभी जीत तो कभी हार होगी...
यह जिंदगी की सड़क है साहब...
धीरे धीरे ही पार होगी...-
आईना और दोस्तों में,
फकत फ़र्क है इतना..
सच हो या हो झूठ,
आईना पूरा है दिखता..
दोस्त गम छुपा के,
सिर्फ़ खुशी है दिखता..
दोस्त अच्छा हो तो,
मंज़िल है दिलाता..
और हो धूर्त तो,
सड़क पर है पहुंचता..
दोस्ती हो या दुश्मनी,
समझ कर है करना..-
हां हमने भी कभी प्यार किया था,
भीगी भीगी सड़को पर इंतज़ार किया था.
वो चली गई ,
एक छाते वाले के साथ,
साथ में भीगने का,
जिसने वादा किया था.-
मेरा गाँव
शहर की भाग दोड़ से थक कर,
जब पहुंची अपने गाँव।
मन महक उठा, तन चहक उठा,
जब देखी अपनी पुरानी छाँव।
हर तरफ थी खामोशी,
लेकिन बोल रहा था हर शाया।
गीली मिट्टी, पुरानी सड़क और उस बूड़े बरगद,
सब ने मिलकर पुराना गीत सुनाया।-
यहां रोटी नहीं, सपने जिन्दा रखते है
जो सड़क पर भूखा सोता है
सिरहाने उसके भी ख्वाब होते है!
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अन्जान शहर की
सुनसान सड़क सी
हो गयी है जिंदगी
कुछ कदम चलते ही
एक चौराहा आ जाता है
और फिर वही सवाल....
किस ओर मुड़ना है?-
फुर्सत मिले तो ख़्वाबों में चले आओ...
पाबंदी सड़कों पर है ...
ख्यालों में नहीं ..!!-
ठिठुर रही है गरीबी सड़को पर हर तरफ,
कोई तो सम्बल की गर्माहट से मालामाल कर दो।
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ठंड के तरफ़ मुँह कर के मौसम ने ली है करवट
खुले आसमां के बीच ठंड की आने लगी है आहट
दिन में तो धूप होगा पर रात होगा मुश्किल भरा
क्यों की इनके पास नहीं है दरवाजे और चौखट
वक़्त भी हर तरह के दिन दिखाता रहता है
होंठों पर झूठी मुस्कान की ले आता है बनावट
ग़रीबी है मज़बूरी है ज़िन्दगी की आज़माइश है
सड़क किनारे एक आसियां की बनी है सजावट
बहुत मुश्किल होगा ये सफऱ जो अब गुजरेगा
कड़कड़ाती ठंड के बीच होगा काम की थकावट
हर हाल में वक़्त इंसान को जीना सिखा देता है
फिर चाहें जितना भी आ जाए सामने रुकावट-