Aftab Ali   (AFTAB)
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Date of Birth- 16th Aug

शुक्रिया
Joined 4 September 2019


Date of Birth- 16th Aug

शुक्रिया
Joined 4 September 2019
25 APR AT 12:14

एक तमन्ना आँखों में आज भी छलक रहा है
बचपन के वो दिन दूर जा कर भी चमक रहा है
माना वो वक़्त बीत गया बस यादें रह गयी
उन यादों से इनका दिल आज भी महक रहा है

कभी कभी कुछ रिश्ते दिल से ऐसे बन जाते हैं
निभाना चाहो गर तो हर हाल में निभ जाते है
वैसे भी भाई बहन का रिश्ता तो प्यारा होता है
बिन लिखे भी एहसास पन्नों पर लिख जाते है

नाम में कोयल की कुकू सी मिठास रखती है
आईने की तरह किरदार कुछ खास रखती है
रिश्तों की उलझन को सुलझाना जानती है
इसलिए कुछ खास को दिल के पास रखती है

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21 APR AT 10:38

अपने नन्हें हाथों से गंदे जूते को चमका देते है
कुछ इस तरह धूल एक पोलिश से हटा देते है

ख़ुद के पैरों में टूटी हुई चप्पल है तो क्या हुआ
किसी के पुराने जूते को फिर से नया बना देते है

ये सफ़र यूँ ही चलता रहता है सुबह और शाम
हर बार एक नये कदम दिल में उम्मीद जगा देते है

हम राह देखते रहे स्टेशन और चौराहे में बैठकर
नज़रों के सामने स्कूल को देखकर मुस्कुरा देते है

अभी वक़्त नहीं है ज़िन्दगी का लुत्फ़ उठाने का
ख़्वाब आता है तो नींद से जागकर भगा देते है

ज़िन्दगी में धूल पड़ी हो तो क्या ख़्वाहिश करें
हम लिखकर किस्मत को हाथों से मिटा देते है

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10 MAR AT 9:22

फूल तो मुरझा जाते है पर ये बच्चें नहीं मुरझा पाते है
दूसरे दिन फिर फूलों से ज़्यादा ये खिले नज़र आते है

फूलों का दर्द ये फूल से बच्चें ही समझ सकते है
काँटों के बीच रहकर भी मुस्कुराना नहीं भूल पाते है

नन्हें नन्हें क़दमों ने चलना तो अभी अभी सीखा था
रोज़ी रोटी के लिए फूल बेचना वक़्त सीखा जाते है

अभी तो ज़िन्दगी के इम्तेहान में थोड़ा उलझें हुए है
स्कूल जाने की चाह में डूबे दिल को रोज़ समझाते है

ना ख़्वाहिश बड़ी और ना ख़्वाबों का बोझ है आंखों में
छोटी छोटी ख़ुशियाँ समेटकर अपने घर को सजाते है

बचपन तो सिर्फ घर, गली और चौराहे में खो गया है
ज़िम्मेदारी के सामने ज़िद करना जैसे भूल से जाते है

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7 MAR AT 12:04

शोर उठता है मेरा दम घुटता है और धड़कन रुकने को है
मोहब्बत तो छोड़ गयी हो, कम से कम जान तो बख्श दो

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3 MAR AT 10:46

आईने में अपनी सूरत देख लीजियेगा
जो नक़ाब चेहरे पर है उसे फेंक दीजियेगा
नया दिल बहुत मुबारक़ हो आपको
जी भर के इस दफ़ा भी खेल लीजियेगा

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25 FEB AT 9:21

भाई तो स्कूल जा रहा है मुझे पढ़ने से रोक रखें है
इतनी सी उम्र में  चावल और चूल्हे में झोंक रखें है
काश मेरे  ख़्वाब की  भी मेरे  अपने  क़द्र कर लेते
मैंने  छिपा  कर  बर्तन  और  कोने  में शौक रखें है

तमन्ना और ख़्वाहिश मेरे सब बेमतलब  के निकले
मेरे आंसू  देख कर भी  किसी के दिल नहीं पिघले
न जाने कितनी बार गिरी  कितनी बार संभल गयी
मेरे पैर  दरवाजे  की  चौखट पर  कई बार फ़िसले

हर सुबह एक गगरी  उठा कर  पानी लाने जाना है
ख़ुद को  भूल  कर  आईने से अब  नज़रें चुराना है
थक चुकी हूं मैं  उम्मीद की आस लगाते लगाते
अपने बिखरे सपनों  को अब  दरिया में बहाना है

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22 FEB AT 11:26

कभी तो  ख़ामोशी  अख़्तियार कर लेती है
कभी  चाय  से  बेइंतहा  प्यार  कर लेती है

कभी आईने तो कभी अपनों से  छिपा कर
दर्द की कश्ती में ख़ुद को सवार कर देती है

कभी लिख  कर  ज़िन्दगी के  इम्तेहान को
अपने कलम  से बातें  दो चार  कर लेती है

कभी दोस्ती की  मिसाल बन जाती है और
अपने दोस्तों  पर जान  निसार  कर देती है

कभी दे कर दोस्तों  को रंग  बिरंगी टेस्टीयां
इस भरी महफ़िल  को गुलज़ार कर देती है

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18 FEB AT 10:57

पत्थर को ना थी ख़बर ज़िन्दगी के इतिहास की
भूख की प्यास की और दो रोटी की आस की

काश उसे भी अंदाजा होता क्या अहमियत होती है
आँखों में ख़्वाब की और ज़िस्म में लिबास की

उसे नहीं पता ग़रीबी उम्र में कोई फ़र्क नहीं करती
जुबां को याद ही नहीं किसी मिठाई के मिठास की

नींद तो आ जाती है हमें कहीं भी क्यूंकि थकान है
क्या फ़र्क पड़ता बिस्तर पत्थर की हो या घास की

अक्सर ही ख़्वाब में रोटी देखकर पेट भर लेते है
नींद से जगने के बाद होती है भूख के एहसास की

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5 FEB AT 12:27

ज़िन्दगी की धूप में उलझा मेरा हर पल है
आईने की चमक से बेखबर मेरा कल है

अपनी फ़िक्र हम ख़ुद से क्या करें ज़नाब
आज़माइश का दौर तो यहाँ मुसलसल है

किसी के पैरों में मँहगे जूते खिल रहें है
हमारे पांव में लिपटी बोतल की चप्पल है

कोई सब कुछ पा कर भी अधूरा है तो
कोई अधूरा होकर भी देखो मुक़म्मल है

काँटों की चुभन ने फिर दस्तक दी है
ज़ख्मों के निशान में फिर से हलचल है

चीखने लगी है पैरों के छाले "आफ़ताब"
हमारे लिए क्या पत्थर क्या मखमल है

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29 JAN AT 11:15

मौत महबूब बन गयी सनम के हाथों में खंज़र देखकर
बादल भी ख़ुश्क हो गया मेरे आँखों में समंदर देखकर

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