प्रेम सती सा,
साथ मैं,
गंगा सा चाहूँ !
हो कर जुदा,
तुझसे मैं,
यार न रह पाऊँ !
प्रेम राधा सा,
साथ मैं,
रुक्मिणी सा चाहूँ !
सुन पिया,
तू न मिला जो मुझे,
तो मैं वैरागण हो जाऊं !!-
प्रेम की गहराइयों में जाकर जाना मैंने
आसान है राधा कृष्ण हो जाना
कठिन तो रुक्मिणी होना है-
रूठ जा ज़िन्दगी मुझसे तू इस कदर
साँस थमने लगे ,रूह फिर खिल उठे
आयेगा फिर तभी तो मज़ा खेल का
जान जाने लगे और नज़र खिल उठे
है ये तन्हां सफर इक नशे सा मगर
दिल में चाहत जगे ,हर डगर खिल उठे
कान्हां तुमको पुकारूँ मैं मीरा सी मगर
रुक्मिणी जो बनूँ ,अश्क़ फिर खिल उठे
अब जो आये नज़र ऐसा मंज़र अगर
देख लूँ जो तुझे ,फिर नज़र खिल उठे
रूठ जा ज़िन्दगी मुझसे तू इस कदर
सांस थमने लगे ,रूह फिर खिल उठे ।
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राधा का प्यार
रुक्मणी का साथ
और मीरा की भक्ति
इनसे ही बनी है मेरे श्याम की हस्ती-
एक बार रुक्मिणी ने कृष्ण से कहा,
''तुम मेरे सिवाय किसी और के मत होना''
कृष्ण ने कहा,
''तुम्हारे जैसा और है ही कौन?''-
रुकमणी.......
....वो रानी तो बन आई,
पर राधा न बन पाई....
(अनुशीर्षक में... )-
HARR MANNATTE KABHI KISI KII BHI
POOORI NAHII HUVI HAI
RADHA AUR RUKHMANI BHI ADHURE RAHE
AUR PREM❤ME HUMM SABB BHII-
राधा या मीरा नहीं उसकी रुक्मणी बन्ना चाहती हुई,
कैसे समझाऊ उसको मैं उसका साथ निभाना चाहती हूँ ।।-