हालातों ने खो दी चेहरे की मुस्कान,
वरना जहां बैठते थे रौनक ला दिया करते थे ...।-
तुम शहर की चकाचौंध को रौनक कहते हो
परिंदों से पूछना गाँव की भोर क्या होती है-
खामोश लब,
नम आँखें ,
सिसकते कंठ
और
बेजान देह
लेकर चली
जाउंगी
एक दिन
किसी के
महलों की
रौनक बनने
ताकि बना रहे
मेरे अपनों का मान...-
जुग जुग जीन, वीरां दियां जोड़ियां,
जिननिया दुआवां देवां ुनियां गे थोड़ियाँ,
तुस्सी बसो, ते बस्दा ग्रां,
इन्जा पांवे जग बस्दा, पर वीरा बिना लेंदा नी कोई ना,
साड़ियां भी होईयां जोगी वाली फेरियां,
कधी कधी ला leiye ओहि बथेरियाँ,
Patija patiji ते paabhiyaan नल बेड़े lagiyann ronka बथेरियाँ,
Maape खुश hondhe दुआवां निकलन बथेरियाँ.
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तमाम रौनकें अब फुर्सत के आगे कमतर लगती हैं
हमको तन्हाई अब महफ़िल से बेहतर लगती है ।-
इन वीरानों में रौनकें फिर लौट आई हैं,
कुछ मर्ज, कुछ चिरागों के नूर लेकर आए हैं।-
बाकियों का पता नहीं,
मेरी दुनिया चलती फिरती है,
जिसे देखकर मेरे चेहरे पर
रोनक सी खिलती है,
उस दुनिया की शक्ल
मेरी मां से मिलती है।
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देख कागज़ का आसमान तारों ने उसे सजाया हैं
है अल्फ़ाजों की रौनक चाँद जैसी उसे देख आसमान खुद जमीन पर उतर आया है ।
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उनके आने से आ जाती है मेरे चेहरे पे रौनक
और वो समझते हैं कि मेरा हाल अच्छा है-