अब इश्क़ नहीं हो रहा है,
बस बदनाम ही रहे है,
माचिस के ख़ाली ख़ाके जैसे है, फिर भी तिल्लियों को जलाने जैसे निशान बड़े है,
चिकनी मिट्टी से बना, मंद आँच पर सिका,
पानी तो शीतल करने का संचार बना है,
समंदर से डाल कर कुछ बूँदे मुझे सताते हो,
मटके को भी खारा करके, खुद के मन में मीठें-शीतल जल के भाव जगाते हो
अब इश्क़ नहीं हो रहाँ है,
बस यूहीं सरेआम हो रहे है,
कही थोड़े कम, कही थोड़े ज़्यादा
बस बदनाम हो रहे है,
अंधेरी रात में दीया क्यों नहीं साथ रखते हो,
जब एड़ी में चोट है तो लाठी क्यों नहीं अपने पास रखते हो,
मैं पथ पर गड्डा। ही तुम्हारी देन हुआ हूँ,
और जब गिरते हो तो अंधेरे तो नष्ट करने की बात करते हो,
वो नभ संचार है इसका, वो नवीन किरणों से वसुंधरा को सींचता है,
खुद के सिर में मोजूद अनगिनत लीख है,
और सूरज को झुलसाने की ग़नीमत दे रहा है,
अब इश्क़ नहीं हो रहाँ है,
बस बदनाम हो रहे है,
लोगो की नज़रों में कुछ निकम्मे और बुद्धि से तमाम् हो रहें है।
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