जीवन सुखों से भरा पड़ा है
तुम्हें निहारने की आदत होनी चाहिए...
सुनो.... तुमने कहा ये ब्रह्मांड एक बग़ीचा है
हाए.... ये सुख !!
मेरे घर धूप है और तुम्हारे हाथों के फ़ूल मुझे बसंत लग रहे हैं...-
सुनो...वो लम्ह... read more
इश्क़ को होना चाहिए था थोड़ा कम फ़ैला हुआ,
जहां बोलचाल बंद हो तो
लिखने भर की भी जगह न बचे....
सुनने वाला न मिले तो
ऐसा न हो के ईश्वर को आवाज़ दो.....-
वो मुझे कहीं रखकर भूल गया है
जैसे ज़ुकाम के दिनों में उसे रुमाल याद नहीं आया....
जैसे स्याह रात में लालटेन चलाना भूल गया हो,
जिसे पता था पढ़ने के लिए उसे चश्मा लगता है
और देखो चश्मा भूल गया जैसे,
वो जो कह रहा था तुम ज़रूरी हो
और वो ज़रूरत का हर सामान भूल गया हो...
वो मुझे कहीं रखकर भूल गया है-
दिलों में क्यों कभी सच्चा गिला नहीं होता,
जिसे चाहें वही अपना भला नहीं होता,
कभी जो फ़ूल सा ख़्वाबों में खिला नहीं होता,
उसी का ज़ख्म फिर दिल से मिला नहीं होता,
बहुत आसान है कहना कि सब ठीक है मगर
इश्क़ में महबूब हरदम ही वफ़ा नहीं होता,
जिन्हें हम जान कहते हैं, वो क्या नहीं होते?
मगर ये सच है हर कोई ख़ुदा नहीं होता,
हमें तो टूट जाना था उसी की बात पर ही,
सब कहते हैं दर्द-ए-दिल कभी दवा नहीं होता,-
दुनियां : अच्छा तो तुम दोनों तो पहली बार मिले थे ना??
मैं : हां बिल्कुल
दुनियां : फ़िर क्या किया??
मैं: मंदिर गए थे....
दुनियां : अरे मंदिर?? वो क्यों??
मैं : मां बाबा से भी पहले हमारे बारे में मैंने ईश्वर को बताना था
दुनियां : अच्छा... फ़िर क्या हुआ???
मैं: शायद ईश्वर ने हमारा रिश्ता स्वीकार नहीं किया....-
वो जो नक़्श था मेरी तख़य्युल (कल्पना )की ज़मीन पर,
निकला वो भी इक सराब, मैं समझा था ख़्वाब है,
तेरे वादों की रविश में जो उजाला ढूँढते रहे,
हर किरन में था फ़रेब, हर सवेरा सराब है,
क़दम-क़दम पे ग़लतफ़हमियाँ साथ रहीं मेरी,
हर सवाल पे चुप्पी, तेरा हर जवाब सराब है,
तिश्नगी को तसल्ली का धोखा मिला कुछ यूँ,
झूठ जो पहन के गया, वो लिबास सराब है
उसकी आँखों में जो जलता था दीया हर शब,
अब बुझा है तो दिखता है, रौशनी सराब है,
लबों पे नाम तेरा था, दिल में नक़्श ग़ैर का,
बेरहम ये कैसा भरम, कि मोहब्बत सराब है,-
चेहरे तो सबने ओढ़ रखे हैं,
मुस्कानों के पीछे मौन रखे हैं,
पर सच तो तब सामने आता है,
जब आचरण बोल उठता है,
बोलों से बढ़कर है बर्ताव तेरा,
कितना सच्चा, कितना गहरा,
जो किसी की आँखें पढ़ लेता है,
वही तो इंसान समझ लेता है,
कोई हाल नहीं पूछता मगर
बर्ताव में इतनी गर्मी होती है,
कि रूह तक राहत पाती है
और टूटा मन भी थोड़ी देर मुस्कुराता है,
आचरण वो धूप है
जो सर्द रिश्तों में ताप भरता है,
व्यवहार वो छाँव है
जो थके मुसाफ़िर को थाम लेता है,-
मुझे 17 की उम्र में किताबें चाहिए थी
और पच्चीस की उम्र में फ़ूल...
और ये बात अजीब है
तुम्हें कैसे पता चल गया
मुझे किताबें देकर
तुम्हें मेरी उम्र के सारे कर्ज़ उतारने हैं...-