सुनो प्यारी मन्नू.....
ये तुम्हारे लिए-
सुनो...वो लम्ह... read more
वो लाल रंग जो माँग में भरते ही
किसी औरत की आँखों में भरोसे की चमक ले आता है,वो बस रंग नहीं होता…
एक वादा होता है—
सात जन्मों तक साथ निभाने का....
पर क्या हर सिंदूर कहानी में साजन होता है?
नहीं,वो रात आज भी कांपती है
जब एक औरत के माथे का सिंदूर
किसी सरहद के पार से आई गोली ने छीन लिया था,
और आज… वही माथा सूना है,
न धूप चूमती है, न नज़रों में उजाला रहता है
कभी-कभी ये सिर्फ़ यादों में बचा एक रंग रह जाता है…
कश्मीर से लेकर राजस्थान की सीमा तक,
ऐसी कितनी ही मांगें वीरान हुईं…
कितनी चूड़ियाँ टूटीं,
कितनी नींदें कभी लौटी ही नहीं.
जब लोग सवाल करते है—
हांसी करते थे" देश उन्हें क्यों नहीं बचा सका?"
और फिर—"ऑपरेशन सिंदूर" हुआ..
न्याय नहीं था वो…वो सिर्फ़ एक जवाब था,उन सूनी मांगों के लिए
जो अब तक चुप थीं, पर कमजोर नहीं थीं,
जब भारत के रणबांकुरों ने
दुश्मन के अड्डे पर वीरता की कहानी लिखी,
तो उस रात हर वीर विधवा की आँखों में
कुछ आंसू गर्व से चमक उठे।
क्योंकि आज,
उनके सिंदूर की कीमत किसी अदालत ने नहीं,
बल्कि सरहद पर खड़े जवानों ने चुकाई....-
मुझे क्या करना होगा?? Just Be your self...
उसने जाते जाते कहा... कितना यकीन था उसे मेरे
होने पर के हम कितने नज़दीक रहे होगे, एक दूसरे में
बह रहे थे ख़ून बनकर... और अब वो जा रहा है तो
मुझे स्वयं को दिखाई देना कितना कठिन होगा...-
नींद को रात के एहसासों में बांधकर…
मैं हर रोज़ एक वादा करती हूं —
कि एक दिन सारे ख़्वाब पलकों की छत पर खुल्ले छोड़ दूंगी…
बिना किसी डर के, बिना तुम्हारे लौट आने की शर्त के।
पर क्या करूं…
हर रात आते ही तुम्हारी परछाईं बिस्तर के कोने पर बैठ जाती है,
और मैं फिर वही पुराने ख़्वाब बुनने लगती हूं…
जिनमें तुम अब भी मुस्कुरा रहे होते हो,
नींद आती तो है…पर वो सुकून नहीं लाती,
बस तुम्हारी यादों की कोई पुरानी गली दिखा देती है,
जहां हर ख्वाब आधा लिखा मिलता है।
शायद एक दिन वाकई…
जब दिल ज़रा कम कमज़ोर होगा,
मैं सारे ख़्वाब तुम्हारे बिना भी देखने की हिम्मत कर सकूं…
लेकिन आज की रात —
मैं फिर वही ख़्वाब ओढ़कर सो जाऊंगी…
जिनमें तुम अब भी मेरे हो...-
उस दिन न कोई ख़ास बात हुई थी,
न मौसम बदला था,न चाय में ज़्यादा शक्कर थी,
बस... तुमने एक हग दिया था—
जिसमें कोई जल्दबाज़ी नहीं थी, कोई दिखावा नहीं था...
सिर्फ़ बाँहों में बसी दुनिया थी....
वो आलिंगन कोई दो मिनट का नहीं था,
वो तो जैसे मेरी टूटी हुई साँसों को जोड़ने आया हो।
वो छूटा नहीं,बल्कि मेरे भीतर गूंजता रहा—
हर बार जब ज़िंदगी ने मुझे अकेला छोड़ा,
हर बार जब मैंने अपने ही आंसुओं से खुद को संभाला...
तब-तब…
तुम्हारे उसी हग की गर्मी
कमरे में नहीं,मेरे वजूद में बची रही...
गैस की गर्मी में तो चाय उबलकर सुकून देती है,
पर तुम्हारी यादों की गर्मी—
एक दिन मुझे अंदर ही अंदर जला कर... राख कर देगी....-
वो जो चुपचाप निगाहों से उतर जाता है,
दिल में इक सर्द सा जादू सा बिखर जाता है,
तेरा ख़ामोश लबों से न कहा जाना कुछ,
जैसे बरसों की मोहब्बत में कोई मर जाता है,
हमने चाहा था उसे फूल की मानिंद सँभालें,
और वो शाख़ से बेमौसम उतर जाता है,
मेरा चाँद उदास है जो रातों में रोता होगा,
बादलों में तन्हा सितारों से लिपट जाता है,
तू जो लम्हा था मेरी उम्र का सबसे प्यारा,
अब वही लम्हा हर साँस को थकाता है,
ज़ख़्म सीने के अभी ताज़ा हैं, सूखे तो नहीं,
जैसे वो ठहर जाता है मौसम गुज़र जाता है,
-
मैंने उदासी भरे कमरे से तुम्हारी तस्वीर उतारने की कोशिश की...
पर तस्वीर के पीछे छुपा वक़्त हिल गया।
जैसे उस फ्रेम में सिर्फ़ चेहरा नहीं, कुछ अधूरी शामें भी बंद थीं —
वो शामें, जो हमने साथ बितानी थीं, पर बस वादे बनकर दीवारों में चिपक गईं!
तस्वीर गई,
पर दीवार पर एक हल्का नीला रंग रह गया —
शायद हृदय पर भी रह गया
वो इंतज़ार का रंग था, जो वक्त के साथ गाढ़ा होता गया,
कभी वो तुम्हारी आवाज़ जैसा मुलायम था,
अब वो एक चीख़ जैसा सख़्त हो चला है,
जो हर आने-जाने वाले को चुपके से पकड़ लेता है,
अगर कोई और आता, तो शायद कहता —
‘यहाँ दाग़ है, साफ़ कर दो।’
पर मैं जानती हूँ,
वो दाग़ नहीं... एक नाम है,
जिसे मैंने सबसे छुपा कर इन दीवारों में सहेजा है…
शायद,
हां कभी भी,.... किसी भी वक़्त
बिना दरवाज़ा खटखटाए तुम लौटो...
तो ये कमरा तुम्हें पहचान ले !!!-