पैर कांटों पर रखकर चलने की जीते हैं हम फितरत लिए
और वो बैठे हैं हमें अपने इशारों पर नचाने की हसरत लिए,
पैबंद रूह पर है जो हर एक शख्स यहां ज़ख्म दिए बैठा है,
खैर दास्तां बयां करते करते हम रो पड़े उनकी शिकायत लिए,
किसके दिल में क्या है बस मेरा ख़ुदा ही जानता है,
रोज़ जाया हो जाती है वफ़ा और हम होते हैं इबादत लिए,-
मेरी आखरी सांस का,
मुझे पता नहीं होगा
शायद,
नहीं बोल पाऊंगी,
हो सकता है कि...
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है ईश्वर...
जो भटकता रहा प्रेम की खोज में
उसके हिस्से देना ठहराव का सुख-
अश्रुओं से बचकर दिन लूंट जाता है जीवन
तुम्हारे बगैर जैसे रात नहीं लगती,
ये चाय से रिश्ता है जो गरमाहट लाती है
वरना ये जनवरी की ठंड है
लगता है जान ले कर जायेगी,
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यादों ने तेरी मन में इक सवाल रखा है
जो तुने कभी कहा था इश्क़.. कैसे ये मलाल रखा है,
कौन कहेगा दिसंबर की बात कुछ और है,
जाते जाते तुने भी यही बरहाल मेरा हाल रखा है
दर्द_तन्हाई_अश्क और थोड़ी परेशानियां,
चराग_ए_मोहब्बत बुझने से पहले मैंने परदा डाल रखा है
मेरे सीने पर इक दाग है जो जलता रहता हैं,
कौन कमबख्त सुकून कहता है ये इश्क़ जो संभाल रखा है
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लगता है इश्क़ का भारी नुकसान हो गया,
जब से बिछड़ना महबूब का इमान हो गया,
मुझे इश्क़ है कहा था उसने होठों से चुमके,
देखो ज़रा.. सीने पर बोसे का निशान हो गया,
पहले कभी ले कर आए थे सुराही आँखों की,
बेबसी, बेरुखी, बेखयाली जीने का सामान हो गया,
जिस्मों को कैसे पता रूह के टुकड़ों का दुःख,
किसी मोड़ पर कोई तस्वीर से दिल परेशान हो गया,-
मुस्कुराहटों में अक्सर छिपे होते हैं गम के आंसू,
घने बादलों के पीछे छिपा चांद मुझे तन्हा लग रहा है-
ये ज़ुल्फ तो नहीं जो उलझकर बिखर जायेगी,
ज़िंदगी धूप है लेकिन कभी तो निखर जायेगी,
कैद आसमां के क़फ़स में ये दर्द का परिंदा,
अंधेरा बहुत है मगर कभी तो ये रात गुजर जायेगी,
आदत जिसको समझते हो मजबूरी है मेरी,
तेरे दिलके सहारे ज़िंदा है नहीं तो धड़कने थम जायेगी-
लोग नहीं पूछेंगे उसके बारे में, न आबरू जायेगी
जूठी हंसी जो हमारे हिज्र की हिफाज़त करती है,-
समय की मछलियां जब सुख जायेगी,
मेरी उम्र दराज हड्डियां पिघलती जायेगी,
जिंदगी के सारे ऋणों के बीच,
सपनों को भींचती हुई,
अपने हाथों से पिसती हुई
ज़िंदगी हाथों से निकलती जायेगी,
देखना इक दिन स्वप्न बंद हो जाएंगे,
रूह की कहानी खत्म होती जायेगी,
धूप, आंचल, आंगन, वो बरगद की छांव,
वक्त की रेत पर हर चीज़ धुंधली नज़र आयेगी,
ठीक है जो जर्द हो जायेगी दरख़्त पे पत्तियां
एकदिन शाख बिखर जायेगी,
मन बैरागी, तन मलंग,
एहसासों के लिबास में रूह ढक जाएगी,
उंगलियों की पोरों से साहिल की रेत पर
जो मोह जाना , जो माया फरफर
रेत के टीलों की ज़ुबानी ली जाएगी,
खैर यह ज़िंदगी कमरे में,
आंखों में एक तस्वीर कैद
छोड़ देना मुझे अपनी तन्हाई के साथ
चाय,किताबें, इश्क़ और तुम
देखना आख़िरी सांस तक ज़िंदगी आराम से कट जायेगी-
पैर कांटों पर रखकर चलने की जीते हैं हम फितरत लिए
और वो बैठे हैं हमें अपने इशारों पर नचाने की हसरत लिए,
पैबंद रूह पर है जो हर एक शख्स यहां ज़ख्म दिए बैठा है,
खैर दास्तां बयां करते करते हम रो पड़े उनकी शिकायत लिए,
किसके दिल में क्या है बस मेरा ख़ुदा ही जानता है,
रोज़ जाया हो जाती है वफ़ा और हम होते हैं इबादत लिए,-