शायरी-
मैं क़ातिब हूँ सुख़नवर तेरे दिल का
तू क़तरा-क़तरा हर रोज़ मुझे पढ़ा कर-
ऐ कासिद कह देना उस दिल-ए-अजी़ज़ को
कि हम बेवफा हो गये उसकी दिल्लगी के लिए
बस वो अफ़सोस ना करें..........................
हमसे इस बेदिली के लिए।-
🍁तेरे बिन सनम🍁
कुछ अल्फाजों तले किल्क खो जाती सनम।
ख्वाबीदा सी सांझ लेकर आई रगबत तुझसे।
गमों की मृगतृष्णा भुला देता शफक उजाला।
घर की चारदीवारी ही सर्वोत्कृष्ट नवाजिश है।
पा लिया तुझे सनम इनायत है तेरी।
फ़िर भी मोक्ष ही इंद्रियजीत है मुझे।
बेमतलब ही हृदय रहता किंकर्तव्यविमूढ़।
भोर का तारा देखो इब्तिदा है तबस्सुम की।
यादें हैं सनम बड़ी ही मार्मिक तेरी।
राह देखता ही रहता अब्र में चकोर।
लबों पर अकिंचित्यकर सा मौन रहता।
विडंबना है उदास मन में बस आ जाए भोर।
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ऐ कासिद इत्तेला कर दे मेरे कातिल को,
मेरी रूह अब अल्फ़ाज़ों में रहती हैं.....!-
काश तेरी ही गुलों की शोखियों में खो जायें हम,
जहाँ टूट जायें सारे मेरे भरम,
कि अब तेरी ही बाहों में रह जायें हम,
मेरे क़ातिब-ए-तक़दीर, मेरे ताजदार-ए-हरम।।-
मुझे मेरे इश्क़ का कातिब चाहिए,
मेरे हक़ में इंसाफ वाजिब चाहिए।
सुना सकता हूँ मैं भी अपनी दास्तां,
मगर इसके लिए मुझे क़ासिद चाहिए।-
अब क्या बने हम खुद के क़ातिब
मेरा क़ातिब तो पहले से ही मेरा रब है।।।।!!-
क़ातिब भी कातिल होता है,
लिखकर दर्द को, अपने जज्बातों का कत्ल करता है-