ये झूठ अब सच होने लगे हैं,
हाँ, आँख पर पट्टी बांध सब जीने लगे हैं।
सच को सच्चाई से नहीं, अब झूठ की जीत से आँका जायेगा,
चाहे बहें अब खून किसी के, झूठ-सच तो अब चुनाव ही बता पायेगा।
आपके ज़मीर पर किसी के लहु का रंग चढ़ता नहीं,
यहाँ तो सब मुर्दा हैं जी, ज़िन्दा तो कोई लगता नहीं।
अख़लाक़ मुस्लिम सुबोध हिन्दू, क़त्ल मगर इंसानियत का है,
जो ये भी न समझ सको तुम, तो हर शहीद आज शर्मिंदा है।
हर इमरजेंसी, हर क़त्ल-ए-आम, आज सही हो गया,
चुनाव ही है पैमाना अगर, तो हिटलर भी अब इंसानी हो गया।
अगर किसी का राम तबरेज़ की मौत से, है खुश भी ज़रा सा हुआ,
तो हर पल के लिए मेरे ज़हन से,है उसका नाम भी मिट सा गया।
कहो चाहे धर्म-विरोधी, देश-विरोधी, नहीं किसी का मलाल,
चुप नहीं मैं हो सकता, किसी तानाशाह का बनके दलाल।
कोई हुकूमत नहीं है मेरी या किसी की माई बाप,
समझना तो तुम्हे भी होगा, ये हैं बस इंसानी पाप।
अब और ना मुझे कुछ है कहना, ना पत्थर दिलों में दर्द भर सकता हूँ,
तुम यूँ ही बस भक्ति में रहना, मैं सच और इंसानियत के लिए बस लड़ सकता हूँ।।
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