बहुत मिन्नतें की थीं परमात्मा से मैंने किसी को पाने के लिए,
शायद परमात्मा ने मुझको काबिल ही ना समझा उसके लिए,
हे परमात्मा! अगला जन्म जब भी देना तो भाग्य में मेरे उसको ही लिखना,
नहीं तो भटकती रहेगी हमेशा मेरी ये आत्मा उसको ही पाने के लिए......-
परमात्मा में लीन हो
मैं भी परम आत्मा हो जाऊं
परम आत्मा हो
परमात्मा को पा जाऊं-
मन्नत का धागा बांध.. मां
ऐसे मुस्कुराती है....
मानो उस एक धागे में
अपना विश्वास जताती है
और मां की इस मुस्कान पे
मैं दुनिया भर का सुख पाती हूं-
क्या 'मेरा' 'मैं' कौन
ये मेरा शरीर ये मेरा धन
ये मेरा तन ये मेरा मन
ये मेरा घर ये मेरा समाज
ये मेरा कल ये मेरा आज
ये मेरा गाँव ये मेरा शहर
ये मेरा नगर ये मेरा संसार
आश्चर्य !! ये सब अगर 'मेरा' है
तो निश्चय ही ये सब 'मैं' नहीं ?
फिर क्या ये 'मेरा-मेरा' कहने वाला
यही हूं 'मैं' ? आखिर ये 'मैं' है कौन ?
क्या है वो जो शांत है अंतहीन 'मौन' ?
हाँ ..वही है असीम वही है उज्ज्वल
वही है वह रोशनी और वही है अनल
वही चमकता चाँद-तारों में वही है सूर्य में
वही धमकता धरती में वही गतिमान है वायु में
जो 'मैं' हूँ वही है परम् चेतना और वही आत्मा है ।
यही 'मैं' है वह अंश जो अंतिम सत्य परमात्मा है।।-
Books are the medium to
become friends with the legends
and even with
the Parmatma (God).— % &-
जिंदगी के मुसाफ़िर है हम,
जिसकी डोर परमात्मा के हाथों में है।
हम तो सिर्फ कठपुतलियां है यहां,
जिसे अपनी कला का प्रदर्शन करके एक दिन चले जाना है।
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पार्वती संग करूँ तपस्या या पार्वती बन जाऊं
शिव तुमसे मिलने ख़ातिर हर राग मैं बिसराऊं
राह तू मुझे बता दे ऐसी जिसको मैं अपनाऊं
मंज़िल तुझे बना कर मैं पथ अग्रसर हो जाऊं
ध्यान से तुझको देखूं में ध्यान से तुझको पाऊं
ध्यान से ही कर विघ्न दूर फिर मैं तेरी हो जाऊं
सब कुछ पाकर भी हूँ अपूर्ण मैं समझ न पाऊं
तुझ पूर्ण में मिलकर मैं अपूर्ण, पूर्ण हो जाऊं
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अनन्तसी ख्वाहिशोके लिए,
परमात्माको क्यों बुलाया जाए?
फायदेका सौदातो यही है की,
परमात्माको ही पाया जाए।।-
खुदा,
तू सही है या मैं ग़लत ।
मैं सही हूं या तू गलत ।।
नहीं जानना यह जो रिश्ता ख़राब
करे आत्मा का परमात्मा से ।।।
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