आशिकी के शिखर पर...
अभी ठहरा था मैं कुछ पहर...
कि मुझे गर्दिश में भेज दिया...
उसकी बेवफाई की इक लहर...-
क्या हमारे इश्क का उनपर नहीं हुआ कुछ असर
क्यूं नहीं लेते वो हमारी खबर
क्या अब वो कभी नहीं आयेंगे हमारे शहर
क्या अब हमे ऐसे ही बिताने होंगे पहर
क्या इतनी ही थी हमारे प्यार की लहर?-
वो अलग दिन थे अलग अहसाश था - बाबू जी हल जोतते - मैं बेसुद पीछे-पीछे भागता था - उम्र बड़ी दो रोटी से चार पे पहुँचा - दो की तलाश में गाँव छोड़ शहर आना हुआ।
(अपना पहाड़ उत्तराखंड)-
बिख़री है चाँदनी जमीं पर ऐसे
जैसे शब़नमी ओस की बूँदे।
खामोश़ है फिजाएँ और
पहाडो़ पर है बर्फ़ की चादर
बिछी हुई कि जैसे,
पुकारती है की आ
जाओ आगोश़ में।
क्या खूब़ सवाँरा है
खूदा़ ने प्रकृति को यहाँ।
कि दिल कह रहा है
यहीं एक घर बना लूँ
पर कहाँ मूम़किन है
बँजारों सी जिंदगी मेरी
कभी यहाँ तो कभी वहाँ।
आँखों में बसा लेते हैं
इस खुबसूरत़ नजा़रों को
हमेशा याद रहेगी ये चाँदनी ,
ये पहाड़ और देर तक बैठ
कर जी भर निहारना इसे
कल अलविदा कह दूँगी पता नही
फिर जिंदगी यहाँ लौट कर
आए न आए।
पर खुब़सूरत यहाँ की यादें
हमेशा रहेगी जेह़न मे मेरे।
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যদি সত্যিই জন্মান্তর বলে কিছু থাকে
ঝর্ণা হয়ে জন্ম নেব পাহাড় দেশের বুকে।
ইচ্ছেনদীর গল্প শোনাব খরস্রোতায় ভেসে
পরজন্মে মিলবো আবার জাতিস্মরের বেশে।-
Tumse hui woh chand bhar mulaqatein,
Kuch mahino ke do-pahar ki woh baatein....
Bas itne se naseeb mein the tum mere.-
सुबह की फिक्र में घिरकर तमाम रात गुजर जाती है
दिन गुजर जाता है हर एक शाम गुजर जाती है
कभी तार्रुफ़ हो उससे तो उन उजालों में सिमट जाऊँ
जिसे पाने की कोशिश में मेरी हर पहर गुजर जाती है।-
कल रात के बीते तीजे पहर से ही हो रही है मेरे दिल में बड़ी ही बेचैनियां
ले जा मेरे दिल को मेरे महबूब के पास वो पढ़ लेगा मेरे दिल की बेताबियां।।-
धवल सी यामिनी के हर पहर,जो मेरी खिड़की से मुझे निहारता है,
हां यही अलबेला चांद संग मेरे,मेरी ज़िंदगी का हर पल गुजारता है।।-
बारिश बन जब अपनी ज़िंदगी में आता है कोई
आसमां सा मन,मिट्टी सा तन महकाता है कोई।।
खिलाता है सभी सूखे और बिखरे हुए फूलों को
कोपलों के संग सुंदर सा चमन बसाता है कोई।।
जगाता है हृदय में दबे हुए सारे सुर व संगीत को
राग बन रागिनी के अधरों पर गुनगुनाता है कोई।।
श्रृंगार करता है वो चांद की सोलह कलाएं लेकर
आईना बन आठों पहर दुल्हन सा सजाता है कोई।।
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