शर्म उन्हें न आएगी,नेता हैं वो साहब।
भला उनसे उम्मीद भी कैसे रखोगे,
पकोड़े तलने को रोजगार कह तो दिया।
अच्छे दिन बस उनके भाषणों में रहेंगे,
समझ ये बेरोजगारों को आ तो गया।
शुक्र है पढ़े लिखे और अनपढ़ एक हो गए,
जज़्बा था उनमे दूरियां को मिटा तो दिया।
बेची थी जिन्होंने चाय तीन सालों तक,
वो पकोड़े बेचेंगे अब बचे 2 सालो तक।
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अपनी नाकामी छुपाते हैं ,
स्वयं को देश का बबुआ बतातें हैं ।
देश की रोटी खातें हैं ,
स्वयं को बुद्धिजीवियों में गिनतें हैं ।
अधिकतर मुद्दों पर नाकामयाब होतें हैं ,
स्वयं को हर क्षेत्रों में कामयाब बतातें हैं ।
देश के ये हमारे नेतागण हैं ,
स्वयं को हमारा विधाता बतातें हैं ।-
उनसे ज़्यादा नफ़रत मत करो तुम
बस चुपचाप वोट देते रहो
तुम्हारी साँसें उनके हाथ गिरवी हैं
अतः कुचले जाने के बावजूद
उसे आत्मसम्मान की ओट देते रहो
सौ ,पांच सौ या पूरी सब्ज़ी
इतनी औक़ात है एक रैली के लिए
अपने भविष्य की क़ीमत पर
पूरी धोती फाड़ कर लंगोट लेते रहो
तुम बेगैरत हो इसलिए उनके
फेंके टुकड़ों की लूट खसोट लेते रहो-
आज का लिखा थोड़ा कड़वा व खारा है।
क्योंकि इसमें कुर्सी का खेल सारा है।।
किसी को नोट की, किसी को पेट की।
भूख सभी को है, मिटा कौन पाया है।।
शानो-शौकत, रुतबा तो बस सयासियों के घर हैं।
जनता के घर केवल झूठें वादों को पाया है।।
छूट कहीं तो शुरू हुई होगी रिश्वत की।
तभी तो भ्रष्टाचार का इतना बिल आया है।।
किसी ने किसी को पन्द्रह से पच्चीस तो।
किसी ने पच्चीस से पैंतीस बताया है।।
मगरमच्छ के आंसू ना ही बहाओ तो अच्छा है।
धिक्कार है! जिसने शहादतों को भी केवल कर्तव्य बताया है।।
आए दिन कईयों बलात्कार के केस होते हैं।
और सुना है देश में बेटी बचाओ अभियान चलाया है।।
पहले चटपटी खबरें तो बना ले! थोड़ा तुम, थोड़ा हम कमा लें।
अमूमन मूक की वजह से अल्प की गूंज को शिकस्त पाया है।।
गरीबी, चंद लोगों की चाटुकारिता, भुखमरी और।
बेरोज़गारी ने आज यह लिखने पर उकसाया है।।-
झूठ का कारोबार है,
सच बोलने की मनाही है |
तरक्की सिर्फ भाषणों में है,
ज़िन्दगी में तो बस तबाही है ||-
अमीरों के घर भर रहे हैं पैसों से,
गरीब का कर रहे हैं हंसकर अपमान,
वोट के नाम पर हाथ जोड़े खड़े हैं,
विकास के पूछो तो सूखते हैं उनके प्राण,
बेईमानी तो रग-रग में है बसी है इनकी,
खा लिया बेच कर इन्होंने ईमान।
भाषण तो बड़े जोश में दे देते हैं,
पूरा नहीं करते मगर देश का काम,
काबिलियत के पंख तो हैं नहीं ,
बात करते हैं ये छूने की आसमान,
खटमल की तरह बसे हैं इस देश में,
खा लिया बेच कर इन्होंने ईमान।
सच्चाई इनकी नहीं आ पाती है बाहर,
अपनी तरफ कर लेते हैं सबका ये रुझान,
गड़े मुर्दे उखाड़ने लगते हैं ये दूसरों के,
जब संकट में होता है खुद का मान,
नोटों की गड्डी है इनके तकिए के नीचे,
खोखले भला क्यों नहीं होंगें इनके बयान?
लाशों पर चढ़कर गद्दी पर बैठते हैं,
खा लिया बेच कर इन्होंने ईमान।-
हां अंतिम संस्कार उसका
थोड़ा जल्दी में कर दिया
थोड़े से घाव थे शरीर पर
लेकिन ,
बलात्कार उसका हुआ ही नहीं था
एक पत्रकार आयिं थी वहां पे
तब,जब उसकी चिता जल रही थी
"डीएम साहब" का नाम बता कर उसको
निकलवा दिया
बस एक खून का केस है ये
बलात्कार तो उसका हुआ ही नहीं था
हमारे पुलिस ने तो पत्रकारों की सभा में
कहा था कोई शुक्राणु नहीं मिला "वहां"
हां गहरे चोट के निशान थे "वहां"
लेकिन बलात्कार उसका हुआ ही नहीं था
गए थे हम भी उस टाइम वोट मांगने
"उनके" गली मोहल्लों में
अब भी उस परिवार से मिलने जाते लेकिन बलात्कार उसका हुआ ही नहीं था
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दिशाहीन नेतृत्व विनाशी है, यह अटल सत्य है... किन्तु उससे भी ज्यादा हानिकारक है उस पर किया जाने वाला अंधविश्वास
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वीर जवानों की शहादत💐 पर नेताजी कुछ बोल रहे हैं कि "देश के दुश्मनों के दाँत खट्टे करेंगे, चीन से बदला लेकर रहेंगे.."
पर नेता जी🙏 सुनने में आया कि कोरोना के डर से तो आप Lockdown में एक दिन भी घर से बाहर नहीं निकलें, इसपर क्या कहेंगे ❓-
तुम सब चौकीदार बनो ,
अपने बेटे को भी कुछ बनाऊँगा . !
तुम अन्धभक्ति जारी रखना ,
मैं उसको क्रिकेट में पद दिलवाऊंगा. !!
😂😂-