Mansi Pavitra   (पवित्रा)
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Joined 25 April 2019


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23 MAR AT 8:28

कृष्ण साहस, कृष्ण बल, कृष्ण अनंत आशा,
कृष्ण नाम के सूरज ते,छंट जावै मेघ निराशा।

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30 JAN AT 13:04

VIPs ने देखी नहीं, कभी लंबी कतार!
संघर्षों में खाता रहा, आम आदमी मार।

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26 JAN AT 8:56

लेकर!! कोई चिराग-ए- उम्मीद हाथ में,
फिरता है तलाश में, बुझी सी आग की
गुप अंधेरे में खुद के सुराग की
अब ना शोर है, ना अमन है
ना कोई पहाड़, जंगल,नदी,समंदर
यूं तो उठता है तूफान,
किसी बंद कांच की शीशी के अंदर
वक्त की खाक में चिंगारी मिल चुकी
दिलासों के धागों से जु़बान सिल चुकी
धुंधली है राहों पर पैरों की छाप अब
थके होठों से आवाज रही कांप अब

फिर भी!
करता है रखवाली अपने उजड़े बाग की
फिरता है तलाश में......





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6 DEC 2024 AT 13:35

मेरे 'अंतःकरण' सौरतंत्र के आप सूर्य हो!
सुनते हो, मुरलीधर!
कहता है भागवतम का पहला श्लोक,
आप 'स्वराट' हो।
बना दो मेरी भावनाओं को,
अनगिनत ग्रह और उल्कापिंड।
मेरे हृदय को आपकी पृथ्वी कर दो,
होता रहे केवल आपके चारों ओर परिक्रमण।

आपसे मिलन मेरा पेरिहेलियन है,
आपसे वियोग अपहेलियन।

वैसे पेरिहेलियन से याद आया,
जनवरी की दिनांक 4 जितनी पास है,
हम उतने ही दूर?

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7 APR 2024 AT 21:43

ठाणी पहुंची महल में,दीख्यो तहां नंदलाल
सुध-बुध भूली बाबरी,रोबत नैना लाल
पूछो रूप श्री नाथ सों,प्रभु दरस कौ हाल
छवि कमल बखायो ना,हरषत चित मृनाल


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24 SEP 2023 AT 19:48

बात 'ईर्ष्या' की नहीं थी,
बात थी तुम्हें बांटने की 'कुंठा' की!!

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14 SEP 2023 AT 21:38

सुनो!
मैं आज भी मानती हूं, तुम्हें 'टाईम ट्रैवलर',
जो एक याद से दूसरी याद में घूमे,
क्या वो ट्रैवलर नहीं?

तुम आओगे तो, सबसे पहले
मेरे भूतकाल से टकराओगे,
तब मेरे कमरे की वो किताबों वाली अलमारी,
उसमें तसल्ली से खोजना,होंगे दो प्रेमपत्र,

एक को पढ़ना, दूजे को छोड़ देना
दूजे में हैं सिलवटें,
इंतज़ार के गुस्से में कागज़ मरोड़ दिया था मैंने,
बिलकुल खाली पन्ना!

कहते थे न तुम,
तुम गुस्से में एक शब्द नहीं कह पाती,
और सीधी ओर निचले कोने में, होगा लिखा
तुम्हारी......

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12 SEP 2023 AT 8:00

हे राम! हे वासुदेव!
पीड़ा 'कौशल्या' की हो या 'यशोदा' की
बात तो एक ही है

पीड़ा 'राधिका' की हो या 'सिया' की
बात तो एक ही है

पीड़ा 'बृजवासियों' की हो
या 'अयोध्यावासियों' की
बात तो एक ही है

मैं जानती हूं
आप जानते हैं
आपसे प्रेम करना यानी
आपसे दूरी में तड़पना।

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26 AUG 2023 AT 8:22

हे श्याम!
'रंगभेद' का चश्मा पहने हुए मेरी आंखें,
मैं मूर्ख, गुज़र रहा था,
वृंदावन की कुंजी गली से।

आपके दास से व्यंग्य करते हुए कहा था मैंने,
तुम्हारे स्वामी जैसे
काले वर्ण को
केवल मिली है घृणा।

मंद हंसी में बोला था वह,
तुझे भी गानी पड़ जाएगी इसी काले रंग की महिमा!

'असुर' के रूप में मारा गया था मेरी आंखों का रंग-भेद

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19 AUG 2023 AT 21:50

तुझे क्या पता!
की "इश्क - ए - जहां" में,
यह भी इक सज़ा है,
की मोहब्बत भी करते हैं
और सिर्फ दोस्त ही रहना

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