शहर में मुहाजिर बना के,इस जिंदगी ने ये क्या कर दिया,
गांव में जितनी दहलीज़ थी,उतने में मेरा जहां कर दिया !!
شہر میں مہاجر بنا کے, اس زندگی نے یہ کیا کر دیا..
گاؤں میں جتنی دہلیز تھی, اتنے میں میرا جہاں کردیا !!-
तेरी नज़र जब मुझ पर ठहरा करती थी
मेरी धड़कने मुझसे कई सवाल करती थी
क्यों में तेरे ख़यालों में रहती थी
मेरी ज़िंदगी क्यों मुहाजिर-ए-माजी रहती थी-
गाँव से तो निकले पर शहर के नहीं रहे हम
खुद को थोड़ा क्या बदला कहीं के नहीं रहे हम-
मुहाज़िर बन कर आये हैं हम, तेरे दिल की सराय में,
कि तुमसे मोहब्बत की सज़ा में अब यहीं उम्र क़ैद दे दो ।।-
क्यों मुखालिफ हुईं हैं ये हवाएं मेरे
तसव्वुर में न जाने कौन मुहाजिर आया है-
मेरे इश्क़ का रंग था सफेद तभी तो तेरे हर रंग को कबूल किया
तू अनजान है मेरे दिल के शहर से, गर मेरी हाजिरी को भी ला-हाज़िर पाया...!-
Muhazir hai magar hum ek
Duniya chor aaye hai ,
Tumhare pass jitna hai
Hum utna chor aaye hai...-
यह किन रास्तों की राहदारी मिल गई है
गांव छोड़ कर दुनिया सारी मिल गई है
हम यूं ही नहीं निकले छोड़ कर वतन अपना
हमारे मुल्क में जाहिलों को ताज़दारी मिल गई है |-
Sappno ne muje appno se alag kar diya..
Notto ki baris toh bahut hui mujh per
Per sar ki chatt se dour kar diya-