Aasifa Khanam   (Aasifa❤️)
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Joined 6 October 2017


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Joined 6 October 2017
29 AUG AT 11:13

रहमत  इनायत  सख़ावत   है  अम्मी
सुकून   करम   रफ़ाक़त   है   अम्मी
अल्लाह  ने  दिया  जो  मुझ  इंसाँ  को
इस  फ़ानी  जहां   में   नेमत   है   अम्मी
वो  फ़ज़्ल-ओ-करम  जन्नत  है  अम्मी
हक़  राह  जो  जाए  हिदायत है अम्मी
ग़मों  की  धूप  में  ठंडा  साया है अम्मी
करे  मेरी  हिफाज़त  वो  अता  है अम्मी
मैं  ना-तवाँ  मैं  हैराँ मैं परेशाँ मैं रुसवाँ
इस  ज़ालिम  जहां  में  पाज़बाँ है अम्मी
लफ्ज़ नहीं मयस्सर, जो है काफी नहीं
लिखूँ  कैसे  नेमत-ए-ख़ुदा  जो  है अम्मी
फ़ज़्ल  जिसका  न कर सका कोई बयाँ
वो  ही  तो  खूबसूरत  लफ्ज़  है अम्मी
साया  जिसका  है मेरी ज़ात पर लाज़मी
मेरी शख्सियत को है बेहद जरूरी अम्मी
जो  है  लाज़िम  ग़िज़ा   रूह   की   मेरी
वही  तो सुकून, वही  आग़ोश  है  अम्मी
मैं  करूँ  जब   ख़ुद   पर  सवाल  ग़लत
मुझे  सही  राह   पर  ले   जाए  है  अम्मी
मुश्किल में जो "आसिफा" पड़ जाऊँ कभी
'मैं  हूँ  साथ' यह कह  हाथ बढ़ाए है अम्मी

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25 AUG AT 22:34

एक अलग सी उलझन में
हृदय लिप्त हो जाता है मेरा
जब मैं ख़ुद को समेटने का प्रयास करती हूँ
दिन ढलने के साथ सूर्य की किरणों के संग
बिखरे हुए मेरे अंतर्मन को बुलाती हूँ
पुकारती हूँ के आ जाओ अब ढल गया है दिन
यूँ आवारागर्दी सही नहीं
रुआँसा हो कर हर हिस्सा मन का
मिलता है वापस भीतर मन में
पर गर्दिश नहीं रुकती उनकी
भागते रहते हैं मन में मन को विचलित करने को
अगली सुबह नई दिशा में दौड़ लगाने को
आज दौड़ी हुई दौड़ का हिसाब लगाने में
कितना दौड़ लिए कितना बाकी अब लगाने को
इसी उठा पटक से मन थक जाता है
देर हो जाती है रात में नींद से मिलने को
अब नींद नाराज़ है मुझ से उसे मनाना होगा
अब से जल्दी अंतर्मन के हिस्सों को घर ले जाना होगा
अब से जल्दी अंतर्मन के हिस्सों को घर ले जाना होगा

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15 AUG AT 7:55

मैं हूँ हिंदुस्तानी और यह हिंदुस्तान है मेरा
भारत से है रवानी और भारत ही मान है मेरा
नफ़रती चमचों से कुछ नहीं बिगड़ने वाला
किसी और का नहीं है, यह ख़याल है मेरा

यह मुल्क है हमेशा नौशाद रहने वाला
किसी और का नहीं है, यह ख़्वाब है मेरा
आज हर गली, मोड़ पर मिल जाएंगे फ़सादी
माल-ओ-ज़ात को बचाना यही मशवरा है मेरा

ग़लत पर सवाल करना है ज़िंदा की पहचान
सवाल का रौंदे जाना बाइस-ए-फिक्र है मेरा
पढ़ो लेकिन पढ़ने का इदारा सही चुनना
जाहिलों में न मिलना यही क़ौल है मेरा

झुकाने को आएंगे तुम्हें हज़ार शैतान
ईमान को रखना पुख़्ता यही कहना है मेरा
मुझसे पूछते हैं "आसिफा" क्या कर लूँगी मैं
इसके जवाब में फिर बस एक सवाल है मेरा

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9 MAY AT 22:19

जिनकी  नहीं  है  कोई भी औक़ात
वो हैं के ओरों  से पूछने  में  लगे  हैं

जो  गिरे  हुए  हैं  ज़मीं से  भी  नीचे
पकड़ पाँव ओरों को गिराने में लगे हैं

ख़ुद  को  आईने में  देख नहीं  पाते
ओरों पर कीचड़ उछालने में लगे हैं

मोहब्बत क्या है नहीं जानते शायद
तो  बस  नफ़रत  फैलाने  में लगे हैं

कितने घटिया  ग़लीज़  हो  सकते हैं
हम "आसिफा" यही भाँपने में लगे हैं

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29 APR AT 17:41

तुम अच्छे हो तो बुरे बना दिए जाओगे
फिर भी अच्छा रहना चुना तो मिटा दिए जाओगे

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18 APR AT 19:06

कुछ क़दम चल कर भीड़ से ऊपर उठ जाओ
आगे बढ़ो और फिर थोड़ा हवा से मिल जाओ

जब उठ जाओ ज़मीं से ऊपर कुछ मुस्कुराओ
ज़मीं से ऊपर आसमाँ से नीचे ख़ुद हो जाओ

भीड़ के शोर से दूर हो, अपनों के क़रीब रहो
ज्यादा फ़ासला न हो बस उतना ऊपर जाओ

जब साँस लेने में हो मुश्किल सोच बंद हो जाए
बंद किवाड़ तोड़ दे, उस हवा के नज़दीक जाओ

न लिख सको न बयाँ कर सको कुछ "आसिफा"
तब ख़ुद के साथ कुछ पल तन्हा निकल जाओ

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14 MAR AT 7:10

मेरी  सोच  को  लगाम  दे,  दिल  को  थोड़ा आराम  दे
भटकते  ज़हन  को  थाम, मुझे  एक  पक्का  मुक़ाम  दे

आरज़ी  सुकून  न  दे  मुझे, दे  अगर  तो  दाइमी  क़रार  दे
अज़ल  से भटके  हुए  को, अबद  से  पहले  क़याम  दे

मिले हम ज़हन-ओ-फ़ितरत, इलहाम नहीं असल पयाम दे
तेरी  बन्दगी  में  डूबी  रहूँ मैं, मुझे  एक  सच्चा  इनाम  दे

कर दे मेरी ज़ीस्त पर क़रम, मेरी रूह को अच्छा एहतिमाम  दे
मुश्किलें आएँ तो उनसे डरूँ नहीं, मुश्किलों को ऐसा इंतिज़ाम दे

न हो कभी किसी बात का गम, मुझे तू एक ऐसा अंजाम दे
कुछ भी ना दे चाहे तू मुझे, सब्र आसिफा को जहां का तमाम दे

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6 MAR AT 6:42

सुकून-ए-जाँ परस्तिश में शामिल
है आराम फ़क़त इबादत में हामिल

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3 MAR AT 17:22

मेरे सामने मुझे ग़ाफ़िल समझ
कर रहे हैं अठखेलियाँ
मैंने साथ रह कर चुप्पी साधे
हल करी हैं कई पहेलियाँ

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2 MAR AT 5:55

मुझे जहालत से बचा और इल्म का शुऊर दे
मेरे सर को सजदे में रख इबादत का सुरूर दे

ना जाऊं उस तरफ जो तुझ से ग़ाफ़िल करे
मेरे दिल को संभाल मुझे इबादत का फ़ितूर दे

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