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कैसे नजाकत से जिंदगियाँ सुलझने लगेगी
जब उँगलियाँ मेरी, तेरी उँगलियों से उलझनें लगेगी-
चले आएं हैं दूर तक अब ज़रा आराम किया जाए
बाहों में तेरी हर सुबह को अब शाम किया जाए...-
सर्दियों की शाम में जैसे चाय का होना
छु जाए लबों को तो मज़ा आ जाना
तपती गर्मी में तेरा छु के गुज़रना
एहसास ऐसा के सर्द हवाओं का बहना
बारिशों में तुझ संग बूँदों को छुना
जिस्म ही नहीं रूह को भी भिगोना
पतझड़ के मौसम में तेरा साथ होना
करीब अगर आए तो सब हरा हो जाना
मौसम सुहाना और तेरा गुनगुनाना
ऐसा ही है ना अरीजीत का गाना
ऐसे तेरे संग अब हर मौसम है जीना
साँस आखिरी भी तेरी गोद में सिमटना !!-
यकीनन रोज़ भुला दी जाती है मेरी हस्ती ज़माने में
मगर अल्फाज़ मेरे काफ़ी है, ज़माने से ग़ालिब आने में-
हैरां हो जाती हूँ मैं देख के लोगों के ये मिजाज़
बदले बदले चेहरे और बदले बदले ही अंदाज
पलकों पे बिठाना और बना देना सर का ताज़
और फ़िर ऐसे गिराना जैसे पैरों की धूल नासाज़
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तन्हा रहती हूँ फ़िर भी होता है हाथों में हाथ तेरा
मैं सो भी जाऊँ मगर मुझमें जगता है ख्याल तेरा-
कौन कहता है दास्तां-ए-मोहब्बत पसंद नहीं मुझको
बस ख्वाहिश है के किसी दास्तां का हिस्सा मैं भी बनूँ-