जो ख़ुशियाँ थी उन्हें भी दिल के पास रहना दिया
मैंने सभी दर्द ओ ग़म को अपने साथ रहना दिया
मैंने उसे आवाज़ भी लगाई तो इतनी ज़ोर से
गला छील लिया और खुदको सुनाई नहीं होने दिया
न कोई उम्मीद रख़ख़ी न सितम कोई रहने दिया
मैंने अपने लिए सिर्फ़ इंतिज़ार ही रहने दिया-
उम्र भर सामने नज़रों के उसे रखना था
मैंने उस चाँद को तस्वीरों में क़ैद रखना था-
कुछ बातों का ज़िक्र मैं करता कभी नहीं
कुछ बातें जिनका ज़िक्र जाता कभी नहीं-
तँहा लाश को लेके कँहा जाऊँ इतनी रात मैं
कोई खुला कंही मयखना आस पास भी नहीं है
हर तरफ़ हैं रोड, बड़ी बड़ी इमारतें और चौराहे
पंछी अब किधर जाए कोई शजर आस पास भी नहीं है-
अब मैंने अपने घर को सजाना भी छोर दिया
उसने शहर क्या छोरा मैंने ज़माना ही छोर दिया-
सब गिलों को गले मिलके भुला देते हैं
चलो ज़माने को दोस्ती का शिला देते हैं
अपने दरमियाँ गुमनामियत मिटा ‘अजनबी’ बन
चल दोस्त इस रिश्ते को नया ‘उत्कर्ष’ देते है-
थे जो शादाब बहारों के वो मंज़र लाओ
हो सके तुम से तो मौसम वही बेहतर लाओ
महफ़िले शेर में मौक़ा न मुझे दो लेकिन
शौक़ से लोग सुने ऐंसा सुखनवर लाओ
हमको आता है हुनर जीने का रूत जो भी हो
तुम बहारें नहीं देते हो तो पतझर लाओ
ख़ौफे रुसवाई नहीं जाता अगर दिल से तो फिर
वास्ते मेरे हर इक ज़ख्म छुपाकर लाओ
देखें हैं दिल ने यहाँ कितने बहारों के सितम
अब मेरे दिल के लिए चाँद का पत्थर लाओ-
ये तो फ़क़त अब हम ही जानते हैं अजनबी
इंतकाल के बद भी उन्हें ज़िंदा कैसे रक्खे हैं-
हवाएँ विष से भरी शहर छटपटाने लगा
प्रलय का ध्यान मुझे बार बार आने लगा
होसले पस्त नहीं जीने की इच्छा है बाक़ी
बिजलियाँ कल ही गिरीं ,आज घर बनाने लगा
अपनी पीड़ा में जला ’अजनबी’ तो तमस में डूबा
पराई आग सहेजी तो जगमगाने लगा
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दिए को पंखे के नीचे रख कर
वो आज़माता है चरागों को बुलंद कर कर-