मुग़ालते में रहता था वो शक़्स बहुत
जो सोचता था के सब अपने हैं यहाँ-
'घमंड टूटेगा, ऐसा लोग कहते हैं,
'न जाने किस "मुगालते" में रहते हैं..!-
मैं देख सकता हूँ तुम्हें
अपने अवचेतन एकांत में ,
मुग़ालते से बचने के लिए चेत जाता हूँ ,-
**प्यासे को खूब तालाब देखते है रेगिस्तान में,
ये मुगालते ही है जनाब.!!
जो बिना सोचे समझे एहसास होते है..**-
यूँ मुग़ालते में ज़िंदगी,
अपनी हम बसर करते हैं ,
जीते तो हैं किसी और की ख़ातिर,
पर किसी और को अपना रहगुजर कहते हैं !!-
यक़ीनन कुछ तस्वीरें तो रखी होंगी उसने मेरी
कुछ लोग मग़र आदतन, भुला दिए जाते हैं
वो कहते थे, कभी झूठ नहीं कहते वो मुझसे
कुछ सच मग़र इरादतन, छुपा दिए जाते थे
बेशक वाकिफ़ था अंजाम से अक्सर
कुछ वादे मग़र मुग़ालतन, निभा दिए जाते थे
मेरे लिखे ख़त आज भी पढ़े जाते होंगे तन्हाई में
कुछ नाम मग़र ग़ालिबन, मिटा दिए जाते हैं-
मेरी,
इबादत का,
कोई वक्त मुक़र्रर तो कर,
क़ैद हैं हम भी,
ख्वाहिशों की गिरफ़्त में,
कभी उनसे रिहाई तो कर !
अना-परस्ती में,
बेखबर रहे हैं ,
हम भी औरों की ही तरह,
कभी हमारी भी,
सोयी ग़ैरत को,
झकझोर के खबरदार तो कर !
बहुत,
जी ली ज़िंदगी,
हमने मुगालते में अपनी,
इल्म के,
नूर से तू इसे भी अब,
एक बार ही सही रौशन तो कर !-
उनसे सवाल करना गज़ब हो गया
मुगालते में जिन्दगी कट रही थी
बुरा क्या था।-