मेरे ख़्वाब,
आजकल फ़िज़ूल में ही,
ज़ेहन में कुछ ऐसे डूबते उतरते रहते हैं.
जैसे कोई बासी फूल,
अर्ध्य के बाद,
दरिया में भटकने छोड़ दिया जाता है.-
वो ग़ज़ब की रात थी.
हर सपना सच होगा,
कुदरत ने कही कुछ ऐसी बात थी.
उसने आसमान को,
छूने का सपना देखा था,
और मैंने तारों के टूटने का.
फिर एक रोज़,
कुछ ऐसा हुआ कि,
वो सचमुच आसमान छूने लगा.
पर टूटते तारों को न देख पाने के कारण,
उस ऊँचाई पे भी किसी के साथ की,
चाहत वह कभी पूरी न कर पाया.
पर मैं आज भी हर रोज़,
टूटते तारों को देखने की चाहत,
जमीं पे लेटकर भी पूरी कर लिया करता हूँ.-
तुम्हें कभी अगर,
मंजिलों का क़सूर,
तुम्हारे वास्ते ठहर जाना लगे,
तब भी गलती से,
ये न समझना कि,
रास्ते भी रुक के बेनूर हो गए ।
अरे,असली,
कसूरवार तो तुम हो,
जो मंजिल पाने के,
उन्माद में,
अकर्मण्य हो,
ख़ुद ही बेख़ुदी में चूर हो गए ।।-
ख़ुद के,
रेशे को बटोरता,
ख़ुद ही को,
तकली की तरह बीनता,
मैं,
ख़ुद का बुनकर,
ख़ुद को ही,
उलझा बैठा,
गलती से,
उस रोज़ जो,
तेरे पास आ बैठा ।-
और,
कोई बात अगर,
रह गयी हो तो बताएँ तुम्हें….
हो के बेफिक्र,
कभी तसल्ली से,
अपना हाल भी सुनायें तुम्हें …
बस,
यही एक तमन्ना,
दिल ए नैमिष में रह जाती है हर दफ़े …
तुम कहो तो,
दिल के,
दरवाज़े भी खोल के दिखाएँ तुम्हें …-
दोमटी मिट्टी में,
दोपहर भर,
बनारसी गलियों की,
खाक छानती,
दो जून की रोटी,
आख़िर शाम में थक हार के,
मेरी नौका पे,
सवार हो,
मणिकर्णिका घाट पर,
उतर के मृत्युभोज के लिए,
ख़ुद को,
बिना कहे परोस ही गयी,
और मैं,
अपनी बारी के,
इंतज़ार में,
फिर एक बार,
मन मसोस के,
चुपचाप लौट आया |-
सबसे जरूरी बात,
कि हम ग़ैर जरूरी लोगों,
चीजों और बातों का भी,
कायदे से ख्याल रखते हैं ।
अब आप पूछेंगे क्यूँ ?
तो मैं कहूँगा कि ये जो,
ज़रूरतों का संसार है न,
बस इसके चलते ही,
स्वार्थ का ये सारा व्यवहार है ।
सो हमें यही समझना होगा,
कि जिस दिन,
ये स्वार्थ हो जाएगा खत्म,
बस उस दिन से ही,
जरूरतों का हिसाब भी हो जाएगा कम ।-
तेरी मैयत के दिन,
चढ़ाने के वास्ते,
बड़ी मुश्किल से,
कुछ फूल लाया हूँ ..
आपसी अनबन में,
जिसे उम्र भर,
छुपाता रहा तुमसे,
अपनी वो भूल लाया हूँ …-
जो बदल सका,
उसे बदल दिया उसने,
जो न बदल सका,
उसे छोड़ दिया उसने ;
जो गमगीन हो गया,
उसे तोड़ दिया उसने ,
जो तन के खड़ा हुआ,
उसे मरोड़ दिया उसने ;
वो वक्त है,उसे,
हर एक माफ़ी हासिल है,
सो पुराने ज़ख्मों को,
रह रह के कुरेद दिया उसने,
अब तुम बताओ,
कि तुम क्या करोगे ?
तुम्हारे हाथों में तो नियति का,
भाग्यलेख लिख छोड़ दिया उसने ॥-