ज़हन पर दिल की हुकूमत हुईं थीं।
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गर्दीश-ए-अय्याम पर,
तल्ख़-ए-ज़माने की सर्द हवाएं।
बेजुबानों कों जुबान दो,
मसीहा आ कर हाथ थाम लो।-
तू और मैं ,
तीसरा तुझ पर भरोसा।
मैंने किया खुद को तेरे हवाले ,
जहां चाहे वहां लेकर जा।।-
आंख से आंख, मिलाई।
हक पर पर डटा रहा ,
होने दी रुसवाई ।
सच्चाई की खातिर,
जान लड़ाई।
आखिर, फतह उसी ने पाई।-
खुद के मुक़ाबिल खड़ा हूं मैं ,
खुद से बेवजह लड़ा हूं मैं ।
तू ही तू की ज़िद पर अड़ा हूं मैं ,
बन के आंसू तेरी आंखों से झड़ा हूं मैं ।
तेरी यादों की कब्र में गड़ा हूं मैं ,
बनकर मोती रेत पर पड़ा हूं मैं।
रुक - रुक कर चला हूं मैं,
उम्र से कहीं ज्यादा बड़ा हूं मैं।
रो - रो के हंसा हूं मैं,
भुलाए ना भूले वो बला हूं मैं।-
सज़ा में भी मज़ा है ।
कली फूल बनी ,
यह कांटो का सिला है ।
इश्क का ये रंग है ,
दिल दिमाग से जुदा है।-
लौटा के दुखों का उधार
सब्र का यह आलम है,
मीन चले विपरीत धार।
हर सांस खुदा का शुक्र है ,
जीवन मिला उपहार।-