Kanha   (Prahlad Singh)
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Joined 4 August 2018


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8 DEC 2022 AT 21:12

उसकी लिखावट में खुद को पढ़ना
बहुत खास होता हे किसी शायर की महौब्बत होना।

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6 DEC 2022 AT 18:05

ये जो तुम मेरे सवालो पर खामोश हो जाते हो।
यह तुम नहीं, कोई किरदार है,
जो कभी अपने आपे से बाहर नहीं आता।

भटकन जरूरी हे, सफर को जिन्दा रखने के लिए।
यह तुझमें कैसा मुसाफिर हे जो संभलने से बाज़ नहीं आता।

यह जो दायरा हे जीने का, जिसमें जीवन जरा भी नहीं।
अगर तू जिन्दा हे तो फिर इस दायरे से बाहर क्यूं नहीं जाता।

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3 DEC 2022 AT 20:20

खोना-पाना जैसे एक ज़लज़ला है।
और ठहराव ज़िन्दगी है।

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1 DEC 2022 AT 21:41

मेरे खत का जवाब आया है।
लिखा तो उसने कुछ नहीं,
मगर खत पर ये, तासीर बताते हैं।
कि कोशिश तो बहुत की गई लिखने की।

(तासीर-Impression of writing)

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1 DEC 2022 AT 12:34

जिस बिन्दु पर आकर हम असहाय होना छोड़ देते हैं।
हम संसार की व्यवस्था एवं सत्य को समझने लगते है।

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29 NOV 2022 AT 19:33

अधुरे संवादो में हमेशा एक जीवन्त उम्मीद चूपी रहती है।
और शायद वही उम्मीद कभी संवाद पुरा नही होने देती।

(संवाद - Conversation)

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25 NOV 2022 AT 22:06

पनौ में दबे गुलाब की महक,
अब तलक रूहानी है।

उसके सिरहाने रहती वो किताब,
अब भी मेरी है।

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24 NOV 2022 AT 21:41

इसी रोज ,इसी पल ,यह साथ चुना था।
फिर इस साथ ने पूरी जिन्दगी चुन ली।

Happy marriage anniversary to us 😘

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22 NOV 2022 AT 22:47



मैं पुरवाई सा शान्त बहूंगा तुझमें
तुम पहाडो की तरह मेरा रास्ता रोकना

गुनगुनाता जाऊंगा वो तराने फिर से
तुम सरसराहट मेरी महसूस करना

-प्रहलाद सिंह






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10 NOV 2022 AT 20:48

दोनों एक ऐसी दुनिया का हिस्सा हैं।
जिनके हिस्से में कोई नहीं।

वो जी रहे हे एक-दुजे को,
मगर जताता कोई नहीं।

कुछ बातों पर गौर दोनों ही करते हैं
मगर कहता कोई नहीं।

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