मोगरे का कुसूर सिर्फ इतना है
कि वो गुलाब नहीं है-
ये नन्हे नन्हे दिव्य अशोका के,सिर पर झरते हुए फूल,
कपूर सी महकती हुई धूप...!!
और साथ में तुम ...!
गिलहरी वो गिरगिट ,तितली ,
श्वेत,शुभ्र ये मोगरे के सुवासित फूल...
और साथ में तुम ...!
वो आसमान में चहलक़दमी करता हुआ सूरज
चूम लेता है बरबस ही किसी सफ़ेद बादल का मुख ...!
और स्वयं ही हो जाता है ...शायद शर्म से लाल भी ...
ये मौन प्रेम के धारे ,
ये किसी डोर से बंधे स्थिर दो किनारे
देखो ...वहाँ...अमुआ पर कोयल पुकारे
तुम्हारी पसंदीदा चाय,अंग्रेज़ी के अख़बार की राय..!
मेरा ...हिंदी युग्म सना ये नवभारत टाईम्स
कविता अधूरी है अभी ...
मगर इसे एक हल्की सी मुस्कुराहट से
पूर्ण कर देते हो तुम...!!-
आसमान में बिखरे बादलों को देख कर कुछ याद आगया सदफ़ ! ,
जैसे वो बादल नहीं बल्कि उनके गजरे से बिखरे सफ़ेद मोगरे के फूल हों-
बालों में चाँदनी उग रही हो
और वो मोगरा लेकर आए
तब समझियेगा इश्क़ के फूल हकीकी थे-
कभी जवानी
हफ़ज़ा की
रहा शहादत
का सुकून
यह मोगरा
बड़ा
"ज़रखाइज़" बला का-
मी सावली तुझी होईन,
तू एकरूप माझ्यात होशील...!!
मी अर्धांगिनी तुझी होईन,
तू मळवट माझे होशील...!!-
ये जानते हुए भी, सब भिन्न है लोग
तुलना करते हैं, और तुलनाओं का तो कोई हिसाब नहीं है।-
आज केसांमधला मोगरा
उगाचच दरवळत होता
तुझ्या आठवणींचा धागा
मनात रुजवत होता......-
मी सूर तुझा होईन
तू नाद मल्हार होशील...?
मी साज तुझा होता!
तू जीवन संगीत होशील..?
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मी गंध तुझा होईन,
तू सुगंधी चाफा होशील...?
मी शोभा तुझी होईन,
तू मोगरी गजरा होशील..?-