आदमी हो तुमसे अपेक्षायें बोहत
सारी है
माना कि आज भी कई जगह
बेबस नारी है,,
पर तुम मर्द हो तुमपे जिम्मेदारी
है
समाज ने तुम्हारा किरदार बखूबी
बताया है,,,
तुम्हे दर्द मिलते है रोज पर ईलाज
कहाँ पाया है
रो नही सकते तुम वेदना पाकर भी,,
कह नही सकते शोषित होकर भी
कहोगे तो लोग क्या कहेंगें
नामर्द का तमगा लगा देंगे
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