देर रात सिगरेट जली,
जली फिर देर तलक
इस आस में कि अबके
लगा लूँ होंठों से,
यानी एक आस कि तुम
मिरा हाथ पकड़कर
कर दो नीचे की ओर
फिर उससे जुड़ती आस
के यूँ छेड़ते हुए कहो
"मुझे देखो कितना शरीफ़ हूँ मैं,
और एक तुम हो लड़की!"
आस ये भी कि फिर सिगरेट
न छूने का वायदा ले लो।
फिर???
फिर क्या, हर अपूर्ण आस के साथ
प्रबल होती वेदना, आँसुओं में तब्दील
होती आस और टपकती पहली बूँद से
बुझती हुई लौ!
-