Niharika Jha   (स्याह दिलवाली🖤)
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Sorry No bio.I've maths😉
Joined 29 January 2019


Sorry No bio.I've maths😉
Joined 29 January 2019
23 MAY 2021 AT 23:00

बच्चे पक्षी को उड़ना सिखाती माँ
आंगन में हंसता-नाचता सैनिक
बिकी कहानियों का मूल्य सहेजता लेखक
और प्रेमिकाओं के चोटी गूंथते प्रेमी,
आज भी संसार में प्रेम के समक्ष
होने वाली सबसे सुखद विडम्बनाएं है।

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14 DEC 2020 AT 11:49

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6 NOV 2020 AT 8:49

मुझको ये हुनर जो आ गया
आए अश्कों को लौटा दूँ,
तुम सोच न सको हो फिर
मुझको कितना सब्र आ गया।

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4 SEP 2020 AT 7:17

कितनी बेहिस हो गई हो तुम!
ऐसा क्यों कह रहे हो?
न हँसती हो, न रोती हो
यानी तुमको मेरे ग़म मेरी ख़ुशी
महसूस नहीं होती?
नहीं।
तो फिर बेहिस मैं नहीं तुम हुए हो।

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26 AUG 2020 AT 7:38

एक पूरी ज़िन्दगी दोहरायी जाती है,
अश्कों के बहने से सूखने के बीच
सिगरेट के जलने से राख होने के बीच।

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20 AUG 2020 AT 11:13

जब किसी रात
विरह के ख़्वाब
उन ख़्वाबों में ही
छूट जाएं और
न झलके उनके
अक्स सुबह हलकों
में,
तब आहिस्ता से
बिना आँखों को
ख़बर किये, तुम
चूमना पलकों को
और उतार देना
तुम्हारे द्वारा मेरे लिए
देखे गए वो सारे ख़्वाब
तुम्हारी आँखों से मेरी
आँखों में।
मैं समझूँगी गुजरे रात
मेरी पलकों पर
चाँद ने अपनी शीतल
चाँदनी रखकर मेरी
बीनाई लौटाई है।

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6 AUG 2020 AT 17:08

देर रात सिगरेट जली,
जली फिर देर तलक
इस आस में कि अबके
लगा लूँ होंठों से,
यानी एक आस कि तुम
मिरा हाथ पकड़कर
कर दो नीचे की ओर
फिर उससे जुड़ती आस
के यूँ छेड़ते हुए कहो
"मुझे देखो कितना शरीफ़ हूँ मैं,
और एक तुम हो लड़की!"
आस ये भी कि फिर सिगरेट
न छूने का वायदा ले लो।

फिर???

फिर क्या, हर अपूर्ण आस के साथ
प्रबल होती वेदना, आँसुओं में तब्दील
होती आस और टपकती पहली बूँद से
बुझती हुई लौ!

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28 APR 2020 AT 7:09

विरह में जी रही
शब्दों की आभारी हूँ,

कलम मेरे हाथ में
अब रही ना मैं बेचारी हूँ,

रुक-रुक कर चल रही
अभी ना मैं हारी हूँ,

वज़न भले ही हल्का
बातें लिखती मगर भारी हूँ,

कल की तरह इश्क़ निभाने वाली
मैं आज की नारी हूँ...

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7 JAN 2020 AT 18:00

क्या कहा?
ज़बान लड़ाओगे,
मुझसे!
जीत पाओगे?
सोच लो,
मूक हूँ मैं,
बातों से नही!
ज़बान से ही,
ज़बान लड़ाती
हूँ ।

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26 JUL 2020 AT 11:25

//लाल गुलाब//

(अनुशीर्षक में)

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